Sunday, 28 February 2016

रेज़ांगला युद्ध-जब आखरी सांस तक चीनी सेना के छक्के छुडाते रहे मेजर शैतान सिंह भाटी



भारत में शायद ही कोई होगा जो 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध को याद करना चाहता होl इसकी वजह साफ है, 1962 के युद्ध के जख्म इतने गहरे हैं कि कोई भी उन्हें कुरेदना नहीं चाहताl लेकिन ऐसा नहीं है कि 1962 युद्ध ने सिर्फ हमें घाव ही दिए हैंl उस युद्ध ने हमें ये भी सिखाया है कि विषम परिस्थितियों में भी भारतीय सैनिक बहादुरी से न केवल लड़ना जानते हैं, अपनी जान तक देश की सीमाओं की रक्षा के लिए न्यौछावर नहीं करते हैं, बल्कि दुश्मन के दांत भी खट्टे करना जानते हैंl
1962 युद्ध के दौरान लद्दाख के रेज़ांग-ला में भारत के वीर सैनिकों ने चीनी सैनिकों से जो लड़ाई लड़ी थी उसे ना केवल भारतीय फौज बल्कि चीन के साथ-साथ दुनियाभर की सेनाएं भी एक मिसाल के तौर पर देखती हैं और सीख लेना नहीं भूलती l




चीन का तिब्बत पर हमला, फिर कब्जा और दलाई लामा के भागकर भारत में राजनैतिक शरण लेने के बाद से ही भारत और चीन के रिश्तों में बेहद खटास आ चुकी थीl ऐसे में चीन की लद्दाख में घुसपैठ और कई सीमावर्ती इलाकों में कब्जा करने के बाद भारतीय सेना ने भी इन इलाकों में अपनी फॉरवर्ड-पोस्ट बनानी शुरु कर दी थीl भारत का मानना था कि चीन इन सीमावर्ती इलाकों में अपनी पोस्ट या फिर सड़क बनाकर इसलिए अपना अधिकारी जमा रही थी क्योंकि ये इलाके खाली पड़े रहते थेl सालों-साल से वहां आदमी तो क्या परिंदा भी पर नहीं मारता था, इसी का फायदा उठाया चीन नेl जिसके चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इन ठंडे रेगिस्तान और बंजर पड़े लद्दाख के सीमावर्ती इलाकों में अपनी पोस्ट बनाने की आज्ञा दी—जिसे आस्ट्रैलियाई पत्रकार एन. मैक्सवेल ने अपनी किताब ‘इंडियाज चायना वॉर’ में नेहरु की ‘फॉरवर्ड-पोलिसी’  नाम देकर बदनाम करने की कोशिश की हैl




लद्दाख के चुशुल इलाके में करीब 16,000 फीट की उंचाई पर रेज़ांगला दर्रे के करीब भारतीय सेना ने अपनी एक पोस्ट तैयार की थी जिसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी कुमाऊं रेजीमेंट की एक कंपनी को जिसका नेतृत्व कर रहे थे मेजर शैतान सिंह भाटी l 123 जवानों की इस कंपनी में अधिकतर हरियाणा के रेवाड़ी इलाके के अहीर (यादव) शामिल थेl चीनी सेना की नजर चुशुल पर लगी हुई थीl वो किसी भी हालत में चुशुल को अपने कब्जे में करना चाहते थे जिसके मद्देनजर चीनी सैनिकों ने भी इस इलाके में डेरा डाल लिया थाl
इसी क्रम में जब अक्टूबर 1962 में लद्दाख से लेकर नेफा (अरुणाचल प्रदेश) तक भारतीय सैनिकों के पांव उखड़ गए थे और चीनी सेना भारत की सीमा में घुस आई थी, तब रेज़ांग-ला में ही एक मात्र ऐसी लड़ाई लड़ी गई थी जहां भारतीय सैनिक चीन के पीएलए पर भारी पड़ी थीl


17 नवम्बर चीनी सेना ने रेज़ांग-ला में तैनात भारतीय सैनिकों पर जबरदस्त हमला बोल दियाl चीनी सैनिकों ने एक प्लान के तहत रेज़ांग-ला में तैनात सैनिकों को दो तरफ से घेर लिया, जिसके चलते भारतीय सैनिक अपने तोपों का इस्तेमाल नहीं कर पाई लेकिन .303 (थ्री-नॉट-थ्री) और ब्रैन-पिस्टल के जरिए भी कुमाऊं रेजीमेंट के ये 123 जवान चीनी सेना की तोप, मोर्टार और ऑटोमैटिक हथियारों जिनमें मशीन-गन भी शामिल थीं, मुकाबला कर रहे थेl इन जवानों ने अपनी बहादुरी से बड़ी तादाद में चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया लेकिन चीनी सेना लगातार अपने सैनिकों की मदद के लिए रि-इनफोर्समेंट भेज रही थीl

 परमवीर चक्र मेजर शैतान सिंह भाटी 
 
मेजर शैतान सिंह खुद कंपनी की पांचों प्लाटून पर पहुंचकर अपने जवानों की हौसला-अफजाई कर रहे थेl इस बीच कुमाऊं कंपनी के लीडर मेजर शैतान सिंह गोलियां लगने से बुरी तरह जख्मी हो गएl दो जवान जब उन्हे उठाकर सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे थे तो चीनी सैनिकों ने उन्हे देख लियाl
शैतान सिंह अपने जवानों की जान किसी भी कीमत पर जोखिम में नहीं डाल सकते थेl उन्होनें खुद को सुरक्षित स्थान पर ले जाना से साफ मना कर दियाl जख्मी हालत में शैतान सिंह अपने जवानों के बीच ही बने रहेl वहीं पर अपनी बंदूक को हाथ में लिए उनकी मौत हो गईl
दो दिनो तक भारतीय सैनिक चीनी पीएलए को रोके रहेl 18 नवम्बर को 123 में से 109 जवान जिनमें कंपनी कमांडर मेजर शैतान सिंह भी शामिल थे देश की रक्षा करते मौत को गले लगा चुके थेl लेकिन इसका नतीजा ये हुआ कि भारतीय सैनिकों की गोलियां तक खत्म हो गईंl बावजूद इसके बचे हुए जवानों ने चीन के सामने घुटने नहीं टेकेंl

भारतीय गुप्तचर एजेंसी रॉ के पूर्व अधिकारी आर के यादव ने अपनी किताब ‘मिशन आर एंड डब्लू’ में रेज़ांगला की लड़ाई का वर्णन करते हुए लिखा है कि इन बचे हुए जवानों में से एक सिंहराम ने बिना किसी हथियार और गोलियों के चीनी सैनिकों को पकड़-पकड़कर मारना शुरु कर दियाl मल्ल-युद्ध में माहिर कुश्तीबाज सिंहराम ने एक-एक चीनी सैनिक को बाल से पकड़ा और पहाड़ी से टकरा-टकराकर मौत के घाट उतार दियाl इस तरह से उसने दस चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दियाl



गीतकार कवि प्रदीप द्वारा लिखा गया देशप्रेम से ओतप्रोत गाना जिसे लता मंगेशकर ने गाकर अमर कर दिया था दरअसल वो रेज़ागला युद्ध को ध्यान में ही रखकर शायद रचा गया था.
गीत के बोल कुछ यूं हैं, “….थी खून से लथपथ काया, फिर भी बंदूक उठाके दस-दस को एक एक ने मारा, फिर गिर गये होश गंवा के,जब अंत समय आया तो कह गये के अब मरते हैं खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफर करते हैंl क्या लोग थे वो दीवाने क्या लोग थे वे अभिमानी जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी….”

बताते है कि चीन ने इस लड़ाई में पांच भारतीय जवानों को युद्धबंदी बना लिया था जबकि नौ जवान बुरी तरह घायल हो हुए थेl भारतीय सैनिकों की बहादुरी से हारकर चीनी सैनिकों ने अब पहाड़ से नीचे उतरने का साहस नहीं दिखाया और चीन कभी भी चुशुल में कब्जा नहीं कर पायाl हरियाणा के रेवाड़ी स्थित इन अहीर जवानों की याद में बनाए गए स्मारक पर लिखा है कि चीन के 1700 जवानों को मौत के घाट उतार दिया थाl हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है कोई नहीं जानता क्योंकि इन लड़ाईयों में वीरगति को प्राप्त हुए जवानों की वीरगाथा सुनाने वाला कोई नहीं है और चीन कभी भी अपने सेना को हुए नुकसान के बारे में नहीं बतायेगा. लेकिन इतना जरुर है कि चीनी सेना को रेज़ांगला में भारी नुकसान उठाना पड़ाl

वीरगति को प्राप्त हुए मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सबसे बड़े पदक परमवीर चक्र से नवाजा गया. मेजर शैतान सिंह और उनके वीर अहीर जवानों की याद में चुशुल के करीब रेज़ांगला में एक युद्ध-स्मारक बनवाया गयाl हर साल 18 नवम्बर को इन वीर सिपाहियों को पूरा देश और सेना याद करना नहीं भूलती है क्योंकि “शहीदों की चितांओं पर लगेंगे हर बरस मेले…देश में मर-मिटने वालों का बस यही एक निशां होगा…”
                                                                                                                                         वतन की पुकार 

इस इंडियन ने 15 सौ साल पहले ही खोज लिया था मंगल पर पानी, 15 सौ साल पहले एक भारतीय ने खोजा था मंगल पर पानी, चोरी हुई किताब



खगोलविद् वराहमिहिर।
खगोलविद् वराहमिहिर।
इंदौर।यूएस का वैज्ञानिक संस्थान नासा और भारत का इसरो मंगल ग्रह के बारे में जिन तथ्यों पर रिसर्च कर रहे हैं, उनका उल्लेख तो 1500 साल पहले ही एक भारतीय वैज्ञानिक ने अपनी किताब में कर दिया था। ये खगोलविद् और कोई नहीं वराह मिहिर थे। उनकी इस रिसर्च से वैज्ञानिक अाज भी हैरान हैं। उज्जैन जिले के कपिथा गांव में हुआ था जन्म...
मंगलयान का सांकेतिक फोटो।
मंगलयान का सांकेतिक फोटो।

(28 फरवरी को वर्ल्ड साइंस डे था। इस मौके पर वतन की पुकार  आपको प्रख्यात खगोलविद वराहमिहिर की मंगल पर रिसर्च के कुछ हैरतअंगेज तथ्यों की जानकारी दे रहा है)

कौन थे वराह मिहिर

- वराह मिहिर का जन्म सन् 499 में उज्जैन जिले के कपिथा गांव में हुआ था।
- उनके पिता आदित्यदास सूर्य के उपासक थे।
- वराह मिहिर ने गणित एवं ज्योतिष में व्यापक शोध किया था।
- समय मापक घटयंत्र, इंद्रप्रस्थ में लौह स्तंभ और वेधशाला की स्थापना उन्होंने ही करवाई थी।
- उनका पहला पूर्ण ग्रंथ सूर्य सिद्धांत था, जाे अब उपलब्ध नहीं है।

1500 साल पहले लिखा सूर्य सिद्धांत ग्रंथ।
1500 साल पहले लिखा सूर्य सिद्धांत ग्रंथ।

सूर्य सिद्धांत ग्रन्थ में किया था मंगल की विशेषताओं का उल्लेख

- 1515 साल पहले महान खगोलविद् वराह मिहिर ने सूर्य सिद्धांत नामक ग्रंथ की रचना की थी।
- इस ग्रन्थ में उन्होंने मंगल के अर्धव्यास का उल्लेख किया था जो भारत के मिशन मार्स और नासा की गणना से मिलती जुलती थी।
- नासा ने रोवर सैटेलाइट से 2004 में मंगल के उत्तरी ध्रुव पर उपलब्ध पानी और ठोस रूप में मौजूद लोहे का पता लगाया था।
- पुराणों के आधार पर उस समय वराह मिहिर ने सूर्य सिद्धांत में मंगल पर पानी और लोहे की मौजूदगी का जिक्र किया था।
- आधुनिक मान्यताओं के अनुसार सौरमंडल के सभी ग्रहों की उत्पत्ति सूर्य से ही हुई है।
- वराहमिहिर ने लिखा था सभी ग्रहों की उत्पत्ति सूर्य से हुई है। मंगल सूर्य की संवर्धन किरण से जन्मा है।
वराह मिहिर ज्योतिष के भी प्रख्यात विद्धान थे।
वराह मिहिर ज्योतिष के भी प्रख्यात विद्धान थे।
 

चोरी हो चुका है सूर्य सिद्धांत ग्रंथ

सूर्य सिद्धांत में वराह मिहिर ने वैज्ञानिक आधार पर खगोलीय गणना की है। ये मूल ग्रंथ अब गायब हो चुका है। बाद में अन्य विद्वानों ने सूर्य सिद्धांत को पुन: लिपिबद्ध कर उनकी रिसर्च को आगे बढ़ाया। इसका विश्व की सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। नासा के मंगल अभियान के समय वराह मिहिर की गणनाओं का तुलनात्मक अध्ययन खगोलविद् रिटायर्ड आईपीएस अरुण उपाध्याय ने भी किया है। उन्होंने इस पर किताब भी लिखी है। अब वे भी भारत के मंगल अभियान के डाटा का तुलनात्मक अध्ययन कर रहे हैं।

इतिहास के आईने में मंगल

भारतीय खगोलविदों ने मंगल सहित अन्य सौरग्रहों का अध्ययन विस्तारपूर्वक वैज्ञानिक रूप से किया है। इसे सूर्य सिद्धांत, गरुण पुराण, श्रीमदभागवत पुराण, मत्स्य पुराण, अग्नि पुराण में पढ़ा जा सकता है। इसके अलावा वराह मिहिर, भास्कराचार्य तथा आर्यभट्ट की रचनाओं में भी इनका विस्तार से वर्णन है। उक्त सभी सिद्धांत 1500 से दो हजार साल पुराने हैं। भारतीय खगोलविदों की खगोलीय गणना की माप योजन में है, जो आधुनिक 12.75 किमी के बराबर है।

#TheGreatKhaliReturns: विदेशी पहलवानों से खली ने लिया बदला, जीत ली फाइट

 
 
जीत के बाद रिंग में टाइटल बेल्ट के साथ खली ।
 
 
देहरादून (उत्तराखंड).विदेशी रेसलर्स से फाइट में जख्मी हुए खली ने रविवार को 'द ग्रेट खली रिटर्न्स मेगा शो' टाइटल अपने नाम कर लिया। उन्होंने दो मिनट में कनाडा के पहलवानों को हरा दिया। बता दें कि इस फाइट से पहले विशेष पूजा में उन्होंने कहा था, "28 फरवरी को विदेशी रेसलर को पीटकर बदला लूंगा। मैं सिर के बदले सिर फोड़ूंगा और खून के बदले खून निकालूंगा।" कहां हुआ मैच और फाइट के लिए खली ने कैसे की थी तैयारी...
  

खली ने दो मिनट में रेसलर्स को हरा दिया।
खली ने दो मिनट में रेसलर्स को हरा दिया

- ग्रेट खली शो का महामुकाबला बेहद ही रोमांचक हुआ। खली ने ब्रॉडी स्टील, मैक्स और अपोलो की सारी हेकड़ी दो मिनट में ही निकाल दी।
- उन्होंने तीनों को पीट-पीटकर चित कर दिया। खली ने तीनों को कुर्सी से भी जमकर पीटा।
- बॉलीवुड एक्टर श्रेयस तलपड़े ने ट्विटर पर फाइट की फोटोज शेयर करते हुए लिखा, "कई ड्रामेटिक ट्विस्ट और टर्न्स के बाद आखिर अंत में हीरो की जीत हुई।"
- फाइट उत्तराखंड के हल्द्वानी में हुआ। इससे पहले जख्मी हो जाने के बाद डॉक्टरों ने उन्हें फाइट नहीं करने की सलाह दी थी।
- पर उन्होंने हर हाल में फाइट का फैसला किया। फाइट से पहले उन्होंने विशेष पूजा भी की थी।
- आईसीयू से बाहर आने के बाद खली ने 35 अंडे, पांच किलो फल, 6 गिलास जूस और 7 बर्गर का नाश्ता किया था।
 
खली ने विदेशी पहलवानों को जमकर पीटा।
खली ने विदेशी पहलवानों को जमकर पीटा।
 
फाइट में तीन पहलवानों ने मिलकर पीटा था खाली को
 
- खली के स्पोक्सपर्सन अमित स्वामी ने  बताया था कि, " फाइट में घायल हुए खली के माथे पर सात टांके लगे हैं।
- बता दें कि बुधवार देर रात हल्द्वानी में फाइट के दौरान ब्रूडी स्टील और दो दूसरे रेसलर्स ने उन्हें स्टील चेयर से पीटकर जख्मी कर दिया था।
- बुधवार से खली आईसीयू में थे। डॉक्टरों ने खली की हालत गंभीर बताई थी। उनके कंधे में फ्रैक्चर था।
- सिर, गर्दन, छाती और रीढ़ की हड्डी में भी चोट बताई थी।
- गुरुवार सुबह देहरादून लाए जाने के बाद वे खुद चलकर एम्बुलेंस में बैठे और 6 घंटे में ठीक भी हो गए।
- डॉक्टरों के मुताबिक, खली की सिटी स्कैन और एमआरआई रिपोर्ट नॉर्मल आई है। अभी उन्हें कुछ दिन आराम करना होगा।
 
28 फरवरी के मैच से पहली की थी विशेष पूजा।
28 फरवरी के मैच से पहली की थी विशेष पूजा।
 
ठीक होते ही खली ने रेसलर्स को दी थी चुनौती
 
खली ने कहा था कि वे रिंग में विदेशी रेसलर्स को ढेर कर देंगे। उन्होंने 28 फरवरी को ब्रूडी स्टील से फाइट का एलान भी कर दिया है।
 
 
फाइट के दौरान क्या हुआ था?
 
- दरअसल, ‘द ग्रेट खली रिटर्न्स’ शो में खली पर कई विदेशी रेसलर्स भारी पड़ गए।
- रेसलर अपोलो और भारत के जिंदर महल के बीच फाइट में जिंदर जीत गए। जब वे रिंग में जीत का जश्न मना रहे थे, तभी विदेशी रेसलर माइक नॉक्स और ब्रूडी स्टील रिंग में आ गए।
- उन्होंने जिंदर को पीटा और खली को भी फाइट के लिए उकसाया। खली भी पीछे नहीं रहे और रिंग में कूद पड़े।
- रिंग में आते ही उन्होंने तीनों विदेशी रेसलर्स को पीटना शुरू कर दिया। इस पर रेफरी ने उन्हें एलिमिनेट कर दिया।
- जब खली इसका विरोध करते हुए रेफरी से बात कर रहे थे, तभी विदेशी रेसलर्स ने उन पर जोरदार लात-घूंसे बरसाए और एक ने स्टील चेयर से वार कर दिया।
- घायल होने के बाद भी तीनों रेसलर उनको मारते रहे। इस पर खली की एकेडमी के रेसलर्स ने उन्हें बचाया।
- बता दें कि इवेंट से पहले ब्रूडी स्टील ने WWE रेसलर रहे खली को उनसे फाइट करने की चुनौती दी थी।
- दोनों ही खिलाड़ियों ने इस फाइट के लिए डेथ वारंट पर साइन किए थे।
 
 
फैन्स ने किया हंगामा
 
- शुरू से ही खली ब्रूडी स्टील और बाकी रेसलर्स पर भारी पड़ रहे थे। उनके घायल होने के बाद रेफरी ने मैच कैंसल कर दिया गया था।
- खली की ऐसी हालत देख दर्शकों ने वहां जबरदस्त हंगामा किया और विदेशी रेसलर्स पर मिट्टी फेंकी।
 
 
क्या कहा थाब्रूडी स्टील ने?
 
- उन्होंने कहा था, "मैं खली को चुनौती देता हूं कि वे मुझसे मुकाबला करके दिखाएं।"
- "यदि वे ऐसा नहीं कर सकते तो रिंग के बाहर बैठकर आराम करें।"
- ब्रूडी कनाडा के 10 बार के हेवीवेट चैम्पियन हैं।
- पुएतरे रिको, ऑस्ट्रिया और जापान के भी हेवीवेट चैम्पियन रह चुके हैं।
- ब्रूडी अपने 1200 में से 1170 मुकाबले जीत चुके हैं।
- उनकी लंबाई 6 फीट 7 इंच है। उनका वजन 315 पाउंड है।
 

Friday, 26 February 2016

लो जी आ गयी पानी से चलने वाली मोटरसाइकिल 1 लीटर पानी में जाएगी 500 किलोमीटर

इस समय डीजल की बढती कीमत से हर आदमी परेशान है तो अब खुस हो जाईये जी हाँ  ब्राजील के साओ पोआलो ने ये काम कर दिखाया है
साओ पोआलो में रहने वाले इस आदमी ने ऐसी बाइक बना दी है जो पानी से चलती है और इसका माइलेज भी बहुत अधिक है
रिकार्डो अजवेड़ोईस ने अपनी इस बाइक का नाम टी पॉवर एच्2ओ रखा है


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रिकार्डो की बनायीं हुई ये बाइक 1 लीटर  पानी में 500 किलोमीटर तक जा सकती है


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इस बाइक में एक बेटरी लगी हुई है और इस बाइक का एक विडियो भी youtube पर अपलोड किया गया है


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इस बाइक में इंधन में हाइड्रोजन पर्योग किया जाता है बाइक में पानी डालने पर यह बैटरी की मदद से हाइड्रोजन बनाती है | रिकार्डो की ये बाइक टेस्टिंग के लिए बिलकुल तैयार हो गयी है और अगर ये बाइक सफल हुई तो ये एक बहुत बड़ी क्रांति ला सकती है |

उत्तराखंड: फाइट में बुरी तरह घायल खली ICU में भर्ती, सिर पर लगी गहरी चोट

     ट्रीटमेंट के दौरान खली।
हल्द्वानी (उत्तराखंड).‘द ग्रेट खली’ रेसलिंग इवेंट में इंडियन रेसलर खली बुरी तरह घायल हो गए। बुधवार रात उन्हें हल्द्वानी के हॉस्पिटल में आईसीयू में रखा गया था। यहां से गुरुवार सुबह हेलिकॉप्टर से उन्हें देहरादून लाया गया।  
कंधे में फ्रैक्चर, सिर पर गहरी चोट...
- खली का ट्रीटमेंट कर रहे डॉक्टरों के मुताबिक उन्हें छाती, गर्दन और दिमाग में गंभीर चोटें आई हैं।
- उनके सिर में गहरी चोट है, जिससे काफी खून बह गया है। रीढ़ की हड्डी में भी दर्द हो रहा है।
- उनके कंधे में भी फ्रैक्चर हुआ है। 24 घंटे तक उन्हें वॉच किया जाएगा।
- फाइट में कनाडा की महिला रेसलर के हाथ में भी फ्रैक्चर हुआ है।
फाइट के दौरान क्या हुआ?
- दरअसल, ‘द ग्रेट खली रिटर्न्स’ शो में खली पर कई विदेशी रेसलर्स भारी पड़ गए।
- रेसलर अपोलो और भारत के जिंदर महल के बीच फाइट में जिंदर जीत गए। जब वे रिंग में जीत का जश्न मना रहे थे तभी विदेशी रेसलर माइक नॉक्स और ब्रूडी स्टील रिंग में आ गए।
- उन्होंने जिंदर को पीटा और खली को भी फाइट के लिए उकसाया। खली भी पीछे नहीं रहे और रिंग में कूद पड़े।
- रिंग में आते ही उन्होंने तीनों विदेशी रेसलर्स को पीटना शुरू कर दिया। इस पर रेफरी ने उन्हें एलिमिनेट कर दिया।
- जब खली इसका विरोध करते हुए रेफरी से बात कर रहे थे तभी विदेशी रेसलर्स ने उनपर जोरदार लात-घूंसे बरसाए और एक ने स्टील चेयर से वार कर दिया।
- घायल होने के बाद भी तीनों रेसलर्स उनको मारते रहे। इस पर खली की एकेडमी के रेसलर्स ने उन्हें बचाया।
- बता दें कि इवेंट से पहले ब्रूडी स्टील ने WWE रेसलर रहे खली को उनसे फाइट करने की चुनौती दी थी।
- दोनों ही खिलाड़ियों ने इस फाइट के लिए डेथ वारंट पर साइन किए थे।
फैन्स ने किया हंगामा
- शुरू से ही खली ब्रूडी स्टील और बाकी रेसलर्स पर भारी पड़ रहे थे। उनके घायल होने के बाद रेफरी ने मैच रद्द कर दिया।
- खली की ऐसी हालत देख दर्शकों ने वहां जबरदस्त हंगामा किया और विदेशी रेसलर्स पर मिट्टी फेंकी।
क्या कहा थाब्रूडी स्टील ने?
- उन्होंने कहा था, "मैं खली को चुनौती देता हूं कि वे मुझसे मुकाबला करके दिखाएं।"
- "यदि वे ऐसा नहीं कर सकते तो रिंग के बाहर बैठकर आराम करें।"
- ब्रूडी कनाडा के 10 बार के हैवीवेट चैम्पियन हैं।
- पुएतरे रिको, ऑस्ट्रिया और जापान के भी हैवीवेट चैम्पियन रह चुके हैं।
- ब्रूडी अपने 1200 में से 1170 मुकाबले जीत चुके हैं।
- उनकी लंबाई 6 फीट 7 इंच है। उनका वजन 315 पाउंड है।
    रिंग में फाइट के दौरान खली।
    रिंग में खली को पकड़े विदेशी रेसलर्स।
     एक रेसलर ने खली पर स्टील चेयर से वार किया।


खली के सिर में गहरी चोट लगी।


     चोट लगने के बाद रिंग से बाहर गिर गए थे खली।



    घटना के बाद पहले खली को ग्रीन रुम ले जाया गया और फिर वहां से हॉस्पिटल।

     ट्रीटमेंट के दौरान खली।

Ringing Bells पर दर्ज होगा फ्रॉड केस, BPO को नहीं दिए पैसे


Freedom 251 स्मार्टफोन लॉन्च करने वाली कंपनी रिंगिंग बेल्स को लेकर कंट्रोवर्सीज खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। BPO कंपनी Cyfuture के फाउंडर अनुज बैराठी ने कंपनी पर काम का पैसा न देने का आरोप लगाया है। वे जल्दी ही कंपनी पर केस भी दर्ज करने जा रहे हैं। हालांकि रिंगिंग बेल्स इन आरोपों का खंडन कर रही है।
 
 
क्या है मामला...

- रिंगिंग बेल्स ने Cyfuture से BPO सर्विसेज आउटसोर्स की थी।
 
- Freedom 251 लॉन्च के पहले और बाद के कुछ दिन काम करवाने के बाद Cyfuture ठीक से काम नहीं कर रही हैं ऐसा कहकर काम बंद करवा दिया।
 
- कंपनी को उसके काम का पैसा भी नहीं दिया गया।
 
- रिंगिंग वेल्स ने Cyfuture पर कॉल अटैंड न करने और कस्टमर्स से अच्छी तरह व्यवहार न करने का आरोप लगाया।
 
रिंगिंग बेल्स के डायरेक्टर मोहित गोयल वाइफ के साथ। बैराठी इन्हीं की कंपनी के खिलाफ मामला दर्ज करेंगे।
 
हमें तो शुरू से डाउट था : बैराठी
 
Cyfuture कंपनी के फाउंडर अनुज बैराठी ने बताया कि मेरी कंपनी शुरू से ही रिंगिंग बेल्स और इसके बिजनेस मॉडल को लेकर डाउट में थी, लेकिन जब हमें सीनियर पॉलिटीशियन के लॉन्चिंग इवेंट में आने की जानकारी दी गई तब हमने इस प्रोजेक्ट लेने के लिए हां कर दी। फोन लॉन्च होने के पहले और बाद के दिनों में हमारे कॉल सेंटर ने एक दिन में लाखों फोन अटैंड किए। हमारी 100 लोगों की टीम ने पूरी मेहनत से काम किया।
अनुज बैराठी ने कहा कि रिंगिंग बेल्स भी हमारी सर्विस से खुश थी। लेकिन जब पैसे देने की बारी आई तो अब वह पल्ला झाड़ रही है। यह सीधे-सीधे धोखाधड़ी का मामला है। कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर कंपनी ने हमें एक साल के लिए हायर किया था। अब वह हमें इसके पहले टर्मिनेट नहीं कर सकती। बैराठी ने कहा कि हमने इसके खिलाफ केस दर्ज करने की तैयारी कर ली है।
 

Thursday, 25 February 2016

जानिए, आखिर कैसे 21 साल के दो युवक कर रहे हैं स्वच्छ भारत के सपने को साकार

ज़रूरी नहीं कि आईडिया किसी कॉफी शॉप में कॉपी पीते हुए या होटल में मनपसंद खाना कहते हुए आए। एक उम्दा आईडिया आपको कभी भी कहीं भी आ सकता है । कुछ ऐसा ही हुआ वरुण गुरनानी और वरुण खानचंदानी के साथ। दोनों ही देर रात नए साल का जश्न मना के अपने घर लौट रहे थे, उस दौरान वरुण हाथ में एक खाली कैन लिए हुए था। जिसे वरुण फेंकना चाहता था और उसके लिए डस्ट बिन खोज रहा था। उस समय दोनों के होश उड़ गए जब दोनों को मुंबई से महानगर में एक किलोमीटर की दूरी पर एक डस्ट बिन प्राप्त हुई। वरुण कहते हैं,
"हम इसलिए डस्ट बिन खोज रहे थे क्योंकि हमारे पास समय था मगर उनका क्या जिनके पास समय नहीं है। ऐसे लोग शायद साधारण दिनों में ऐसा न कर पाएं।"



अगले दिन 2016 का पहला दिन था। टीएसईसी नामक इंस्टिट्यूट से इंजीनियरिंग में स्नातक और 21 साल के वरुण को मुंबई को साफ़ करने का आईडिया आया।

एक ऐसा स्टार्टअप जो खड़े होकर स्वच्छ भारत से मिला

दोनों ही दोस्तों ने मिलकर मुंबई जैसे बड़े शहर की रेक्की करी वरुण कहते हैं कि " जहाँ एक तरफ बीएमसी बृहन मुंबई म्यूनिसिपल कारपोरेशन शहर भर में 20000 कूड़े दानों का दावा करती है तो वहीं वास्तविक हकीकत काफी अलग है" जब इन लोगों ने स्थानीय निवासियों से बात करी तो जो नतीजे आये वो चौकाने वाले थे लोगों का मत था कि वे यहाँ - वहां गन्दगी इसलिए करते हैं क्योंकि शहर में पर्याप्त कूड़ेदान नहीं हैं और खोजने पर भी नहीं मिलते हैं।


अगले 16 दिनों में इन दो दोस्तों ने एक ऐसी ऐप का निर्माण किया जिससे लोग अपने आस - पास कूड़े दान खोज सकते हैं। इसके साथ ही नागरिक उन कूड़े दानों को भी मार्क कर सकते हैं जिन्हें पहले नहीं खोजा गया है या फिर वो जो किसी कारण वश गायब हो गयी हैं। इसकी शुरुआत करने के लिए वरुण और अरुण शहर में गए और 400 किलोमीटर की यात्रा कर उन्होंने 700 कूड़े दानों को खुद ही मार्क किया।


इसके बाद वरुण का ये भी कहना है कि अब लोग ये बहाना करते हुए शहर गंदा न कर पाएंगे कि शहर में कूड़े दान नहीं है।

साफ़ सुथरी मुंबई

इस ऐप का नाम टाइडी है और इस ऐप को बनाने का उद्देश्य करोड़ों लोगों की मदद और तकनीक से शहर को साफ़ करना है

कैसे करते हैं एक नए डस्ट बिन को मार्क या वो जो ऐप पर नहीं दिखते

यहाँ यूजर को मैप पर टैप करना होता है। जहाँ भी डस्ट बिन हो आप उसकी फ़ोटो क्लिक करें और टाइडी टीम को भेज दें। यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि हमेशा यूजर और डस्ट बिन के बीच 50 मीटर की दूरी होनी चाहिए। जैसे ही टाइडी टीम डीटेल की जांच कर लेती है ये डस्ट बिन ऐप पर आ जाती है। मज़े की बात ये है कि यहां हर डस्ट बिन को एक यूनीक की दी जाती हैं ताकि यूजर उसे आसानी से पहचान लें।
यदि यूजर को लगता है कि डस्ट बिन को एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रखा गया है तो इस हालत में वो टाइडी टीम को उस डस्ट बिन का यूनीक की नंबर कोट कर सकता है ताकि लोगों को अपने आसपास मौजूद डस्ट बिन की सही लोकेशन मिल जाए। आपको बताते चलें कि फ़िलहाल ये सुविधा ऑटोमेटेड नहीं है और इसके लिए वरुण और अरुण द्वारा आरएफआईडी की मदद ली जा रही है मगर अभी भी इस दिशा में बहुत काम होना बाकी है और फ़िलहाल इस काम के लिए ये लोग बीएमसी को नहीं मना पाएं हैं। वरुण और अरुण बताते हैं कि फ़िलहाल इनके पास कहीं से भी कोई रेवेनुए नहीं आ रहा है क्योंकि इनका इस ऐप को बनाने का उद्देश्य लोगों की मदद करना और जागरूकता फैलाना था। मगर अब ये लोग इसके लिए सीरियस हैं और रेवेन्यू का प्रबंध करना चाहते हैं। आज ये लोग कई सारे एनजीओ से लगातार संपर्क में हैं जो आगे आकर हर तरह से इनकी मदद कर सके।

वरुण कहते हैं कि "हमने मुंबई के आस-पास करीब 1000 डस्ट बिन मार्क की हैं जिनमें से 63 % डेटा हमें यूजर से मिला है। चूँकि ये एक सिंपल आईडिया है इसलिए हम ये नहीं चाहते हैं कि इसमें सरकार का हस्तक्षेप हो, और अगर लोग ही इसे अपने ढंग से करें तो ये एक बहुत विशाल रूप लेगा।

यंग इंडिया का सपना

वरुण और अरुण ने सिर्फ इसलिए कई सारे उम्दा जॉब ऑफर ठुकरा दिए क्योंकि उन्होंने खुद के बारे में न सोच करके पहले अपने देश के बारे में सोचा और इस तरह ये दोनों स्टार्ट -अप इंडिया से जुड़े और देश के लिए जो इनसे बन पड़ा इन्होने वो किया।

इन दोनों ही लोगों का मानना है कि चूँकि ये ऐप एक सामाजिक पहल है जो हमारे मकसद को कामयाब करेगी हमारा उद्देश्य स्वच्छ शहर और एक स्वच्छ भारत है। साथ ही ऐसा करके जो सुख मिलेगा शायद वो एक स्टेबल जॉब न दे पाए। इनका मत है कि ये स्टार्ट - अप मूवमेंट का हिस्सा बनना चाहते हैं और देश में एक सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं।

आपको बतातें चलें कि आज वरुण और अरुण इस दिशा में काम करते हुए कई स्टार्टअप्स की वेबसाइट और ऐप डिज़ाइन के काम में लग उनकी मदद कर रहे हैं। साथ ही इनका ये भी विचार है कि वे भविष्य में भी इसी तरह लोगों की मदद करते रहें।

अंत में अपनी बात समेटते हुए वरुण ने ये कहा कि "आज टाइडी द्वारा सार्वजनिक मूत्रालयों को भी मार्क किया जा रहा है। जैसे-जैसे जरूरत महसूस होगी ये दूसरे शहरों के बारे में भी सोचेंगे। इनकी टीम द्वारा इस दिशा में भी काम किया जा रहा है कि शहर से जो कूड़ा निकलता है कैसे होशियारी से उसका इस्तेमाल कर सकते हैं। वरुण शेयर करते हैं कि " हमारा सबसे बड़ा सपना ये है कि हम दैनिक समस्याओं के लिए पर्याप्त समाधान के साथ सामने आएं"।

10वीं पास मैकेनिक के सपनों को स्टार्टअप इंडिया ने दी हवा, बनाई सबसे कम खर्चे पर चलने वाली ई-बाइक

सफलता पाने की संभावना उस शख्स की सबसे ज्यादा होती है जो अपने सपनों को हमेशा ज़िंदा रखता है। कहते हैं 'सबसे ख़तरनाक होता है सपनों का मर जाना'। जिन्हें अपने सपने की परवाह होती है वो दरअसल अपने सपनों को लेकर जिद्द पकड़ने लगते हैं और उनकी ये जिद्द जुनून में तब्दील हो जाती है। और जैसे ही आपके सपने जुनून में परिवर्तित हो जाते हैं उसके बाद मंजिल पाने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। भीम सिंह एक ऐसे ही शख्स हैं जिन्होंने अपने सपने को सोते-जागते, उठते-बैठते, खाते-पीते जिया और उसको पूरा करके ही दम लिया। भीम सिंह का एक ही सपना था-खुद की डिजाईन की हुई बाइक बनाने का। और आप यकीन मानेंगे मैकेनिक भीम सिंह ने सामान्य बाइक से पांच गुणा कम कीमत पर चलने वाली बाइक बनाई।









कहां और कैसे मिली प्रेरणा


भीम सिंह के पिता रेलवे में डीजल मैकेनिक थे, इसलिए मशीनों के प्रति लगाव और दिलचस्पी उन्हें विरासत में मिली थी। वर्ष 1988 में 10वीं करने के बाद भीम सिंह ने मध्य प्रदेश के झाबुआ के सरकारी आईटीआई संस्थान से आईटीआई की पढ़ाई की। उन्होंने पढ़ाई के बाद कई जगह नौकरी की और छोड़ दी। 1990 में उन्होंने इंदौर के पीथमपुर में बजाज कंपनी में नौकरी ज्वाईन किया। इसी बीच उनके पिता सरनाम सिंह राजपूत की तबीयत खराब हो गई और उन्हें घर जाने की नौबत आ गई। लेकिन कंपनी ने उन्हें छुट्टी देने से इंकार कर दिया। भीम सिंह ने योरस्टोरी को बताया,


"जब मैनेजर ने छुट्टी देने से इनकार कर दिया उसी समय मैंने तय किया अब नौकरी नहीं करनी। नौकरी छोड़ते वक्त ही मैंने मन ही मन ठान लिया था कि अब मैं कहीं और नौकरी नहीं करुंगा। खुद का कारोबार करुंगा। नौकरी छोड़ने पर मेरे दोस्तों ने इसका विरोध किया, लेकिन मैंने तय कर लिया था कि एक दिन मैं खुद मोटरसाइकिल बनाऊंगा। मेरी इस बात पर उस समय लोग हंसते थे। पर मैंने अपने सपने को जीवित रखा और हालात माकूल होने पर अपने सपनों को सच साबित कर दिखाया।"  


25 साल पहले जब भीम सिंह ने नौकरी छोड़ी, उसके बाद उन्होंने बाइक और कार रिपेयरिंग का एक छोटा सा वर्कशॉप खोला। पर इस पूरे समय में उनका सपना एक पल के लिए भी आँखों से ओझल नहीं हुआ। तभी अचानक उनके सपने को स्टार्टअप इंडिया का हवा लगी। स्टार्टअप इंडिया से प्रेरित होकर भीम सिंह ने ऐसी इलेक्ट्रिक बाइक बना दी है, जिसकी चर्चा पूरे प्रदेश में हो रही है। अगर इस बाइक का व्यावसायिक उत्पादन कामयाब हुआ तो पॉल्यूशन और उर्जा संकट की चिंता किए बिना, बेहद सस्ती कीमतों पर ये बाइक सड़कों पर सरपट फर्राटे भरने को तैयार होगी। मध्यप्रदेश के रतलाम शहर के गायत्री मंदिर रोड पर गायत्री इंजिनियरिंग वर्क्स नाम से बाईक और कार रिपेयरिंग का वर्कशॉप चलाने वाले 47 वर्षीय मैकेनिक भीम सिंह राजपूत अपने सपनों की बाइक बनाने में पिछले छह माह से दिन रात लगे हुए हैं। उनका मानना है कि अगले तीन माह में वह इस बाईक को पूरी तरह तैयार कर इसे सवारी के लिए सडकों पर उतार देंगे। हालांकि इससे पहले वह कई बार बाइक का ट्राईल रन कर चुके हैं, लेकिन बार-बार कुछ नया करने के लिए इसे अंतिम रूप देने में अभी थोड़ा सब्र से काम ले रहे हैं।






बाइक की विशेषता 


ये बाइक पूरी तरह वायु और ध्वनी प्रदूषण मुक्त इलेक्ट्रीक बाइक है। बाइक को पूरी तरह से भीम सिंह ने खुद जरूरत के मुताबिक अपने वर्कशॉप में डिजायन किया है। इसमें पल्सर का एलॉय व्हील लगाया गया है। बाइक में 12-12 वोल्ट की कुल 48 किलो वजनी चार बैट्रियां लगाई गई है। बाइक को चलाने के लिए इसमें जो मोटर लगाई गई है उसका आरपीएम 3000 है। बाइक का कुल वजन 150 किग्रा है और इसकी अधिकतम स्पीड 120 किमी/घंटा है। बाइक की बैट्री एक बार फुल चार्ज हो जाने पर यह बिना रूके लगभग 300 किमी की दूरी आसानी से तय करेगी। बैट्री बिजली से चार्ज होगी। बैट्री फुल चार्ज होने में लगभग 3 घंटे का समय लेगी और इसमें लगभग 6 युनिट बिजली खर्च होगी। यानि एक बार बैट्री चार्ज करने पर लगभग 48 रुपये का खर्च आएगा जिसमें आप 300 किमी की दूरी तय कर सकेंगे। इस बाइक को रोड़ पर उतारने में लगभग 1.20 लाख रुपये का खर्च आएगा। इस तरह बाइक चलाने का खर्चा प्रति किमी लगभग 16 पैसा आएगा, जबकि वर्तमान में बाजार में उपलब्ध इलेक्ट्रीक बाइक को चलाने में अभी प्रति किमी 85 पैसे का खर्चा आ रहा है। इस लिहाज से भीम सिंह की ये बाईक काफी सस्ती साबित हो सकती है।





क्या है आगे की योजना 


भीम सिंह इस बाइक के सफल ट्रायल के बाद इसे पेटेंट कराएंगे। इसके लिए अभी से उन्होंने प्रयास शुरू कर दिए हैं। उन्होंने बताया कि इसके लिए वह बाइक को पुणे भेजने की तैयारी में हैं। भीम सिंह का मानना है,


"इस बाइक का व्यावसायिक उत्पादन काफी सस्ता हो सकता है। अगर ये सफल हुआ तो महंगे पेट्रोल और डीजल से निर्भरता समाप्त होगी। इससे प्रदूषण की भी समस्या नहीं होगी।" 


भीम सिंह बताते हैं कि वह एक और प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। उस प्रोजेक्ट के तहत वह सौर उर्जा से बाईक चलाने की कोशिश कर रहे हैं। इलेक्ट्रीक बाईक की सफलता के बाद वह इस काम में जी जान से जुटेंगे।





गाड़ियों के मोडिफिकेशन का भी करते हैं काम


भीम सिंह के वर्कशापॅ में हर तरह की कार और बाइकों की रिपेयरिंग की जाती है। गाड़ियों की बड़ी से बड़ी खराबी वो चुटकियों में हल करते हैं। इसके अलावा भीम सिंह पूरे रतलाम जिले में गाड़ियों को स्टाइलिश लुक देने के लिए भी जाने जाते हैं। सामान्य सी बाइक का लुक बदल कर उसे स्पोर्टी बाइक बनाने में भी उन्हें महारत हासिल है। इससे पहले भीम सिंह जीप को भी मोडिफाइड करते थे। भोपाल सहित प्रदेश के अन्य पहाड़ी इलाकों में चलने वाले वेलीज जीप बनाना भी उनके शौक में शुमार था। सामान्य जीप को वह वेलीज जीप में बदल देते थे। हालांकि अब इस जीप का चलन मध्यप्रदेश में भी कम हो रहा है। इस वजह से उन्होंने अपना काम बदल दिया है, लेकिन ग्राहक मिलने पर वह अब भी जीप मोडिफिकेशन का काम कर देते हैं।


'नौकरी से नहीं निकाला गया होता तो SIS नहीं बनी होती', 250रु. शुरू हुई कंपनी आज है 4000 करोड़ रुपए की

कहते हैं अगर इरादे बुलंद और मजबूत हों तो कोई भी मंज़िल मुश्किल नहीं होती। बस जरूरत है आपको अर्जुन की भांति ‘मछलीरूपी-लक्ष्य’ पर दृढ़ निश्चय और सशक्त-संकल्प के साथ निशाना साधने की। सफलताएँ न कभी परिस्थितियों की गुलाम रही हैं, न होगी, पर संघर्ष के समय में आदमी जरूर विषम-परिस्थितियों का गुलाम हो जाता है। लेकिन वही आदमी अगर उन्हीं गुलामी के बंधनों को तोड़ते हुए लगन और मेहनत के साथ आगे बढ़ता है तो एक दिन निश्चित ही इतिहास रच देता है।

                                                                                      रवींद्र किशोर सिन्हा


कभी किसी समय मे अपना कारोबार महज़ 250 रुपए से शुरू कर उसको आज 4000 करोड़ तक लाने वाले एसआईएस ग्रुप के संस्थापक एवं चेयरमेन रवीन्द्र किशोर सिन्हा ने भी सच मायने में एक इतिहास ही रचा है। एक ऐसा प्रेरणादायक इतिहास जो आधुनिक युग के युवा उद्यमियों का उत्साह-वर्धन करने के साथ रास्ता दिखाने वाला है। रवींद्र किशोर सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत एक श्रमजीवी पत्रकार के रूप में की थी। सिन्हा बताते हैं, 



"1971 के भारत-पाक युद्ध कवरेज के दौरान उनकी भारतीय सेना के अधिकारियों और जवानों से अच्छी खासी दोस्ती हो गयी थी। बांग्लादेश की आज़ादी के बाद सिन्हा पटना वापस आ गये और राजनीतिक संवाददाता के रूप में दैनिक सर्चलाइट और प्रदीप के लिए कार्य करने लगे।"




                                                        जे पी के साथ रवींद्र किशोर सिन्हा

रवींद्र किशोर सिन्हा 1970 के दौरान लोकनायक जयप्रकाश नारायण ( जे. पी.) के द्वारा मुज़फ़्फ़रपुर के मुशहरी प्रखंड में नक्सलियों के विरुद्ध चलाए गए आंदोलन के समय से ही जे. पी. से जुड़े रहे थे, अत: वे दिनोंदिन जे. पी. के क़रीब आते गये। तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध सिन्हा ने दर्जनों कटु आलोचनात्मक लेख लिखे और अन्तत: 1974 में नौकरी से निकाल दिए गये।
रवींद्र किशोर सिन्हा बताते हैं,



"उसदिन शाम जब मैं जे. पी. के यहाँ पहुँचे तो जे. पी. को नौकरी से निकाले जाने का समाचार पहले ही मिल चुका था। जे. पी. ने पूछा कि अब क्या करोगे? मैंने कहा फ़्री-लांसिंग करूँगा। तब जे. पी. ने सलाह दी कि कुछ ऐसा करो जिससे ग़रीबों का दिल छू सको।"


सेना के अधिकारियों और जवानों की मदद से उस कठिन समय में सिन्हा ने मुख्य रूप से भूतपूर्व सैनिकों के पुनर्वास हेतु सिक्योरिटी एंड इंटेलिजेस सर्विस चलाने की ठान ली । एक ऐसा नया कार्य जिसमें रवींद्र किशोर सिन्हा का कोई अनुभव नहीं था। सिन्हा बताते हैं कि उनका एक मित्र मिनी स्टील प्लॉट चलाते थे, जिसे रामगढ़ (झारखंड) में लगी अपनी प्रोजेक्ट-साइट की सुरक्षा के लिए सेना के रिटायर्ड जवानों की जरूरत थी। सिन्हा ने अपने मित्र से कहा कि वो कुछ जवानों को जानते हैं। इस पर उनके मित्र ने सिन्हा को एक सुरक्षा कंपनी बनाने की ही सलाह दे डाली। उस सलाह को सिन्हा ने हाथों-हाथ लिया। उन्होंने पटना में ही एक छोटा गैराज किराए पर लेकर यह काम शुरू कर दिया। सिन्हा की उम्र उस वक्त महज़ 23 साल थी। उन्होंने सबसे पहले सेना के 35 रिटायर्ड जवानों को नौकरी दी। इनमें 27 गार्ड, तीन सुपरवाइज़र, तीन गनमैन और दो सूबेदार थे। इस तरह 1974 मे एसआईएस अस्तित्व में आ गई। उसके बाद रवींद्र किशोर सिन्हा और एसआईएस ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। मसलन, शुरुआती सालों मे ही रवींद्र किशोर सिन्हा की मेहनत और कुशलता अपना रंग दिखाने लगी थी। कुछ सालों के भीतर ही में गार्ड्स की संख्या बढ़कर लगभग 5000 हो गई और जिसका टर्नओवर एक करोड से ऊपर पहुंच गया था।

आज की स्थिति यह है कि एसआईएस ग्रुप मे सवा लाख से ज्यादा स्थायी कर्मचारी हैं। भारत में 250 से ज्यादा कार्यालय हैं। सभी 28 राज्यों के 600 से ज़्यादा जिलों में कारोबार फैला हुआ है। एसआईएस ने अंतर्राष्ट्रीय होते हुए 2008 मे ऑस्ट्रेलिया की कंपनी चब सिक्युरिटी का अधिग्रहण किया था। 2016 मे कंपनी का टर्नओवर 4000 करोड़ के पार हो गया।
रवींद्र किशोर सिन्हा युवाओं को संदेश देते हुए कहते हैं कि आज के युवा को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनना चाहिए। उसे रोजगार लेने वाला नहीं, रोजगार देने वाला बनने की ओर अग्रसर रहना चाहिए। सिन्हा कहते हैं,


"अगर कोई व्यक्ति किसी विशेष बिजनेस मे प्रवेश करना चाहता है तो उसे चाहिए कि वह (बिजनेस शुरू करने से पहले) सर्वप्रथम उस बिजनेस से जुड़ी किसी कंपनी मे काम कर अनुभव प्राप्त करे। उस बिजनेस पर अनुसंधान कर उसे बड़ी बारीकी से समझे।" 


सिन्हा बताते है कि बिजनेस को आगे बढ़ाते समय ऐसी कई चुनौतियां आपके सामने आती है जिस से पार पाना थोड़ा कठिन जरूर लगता है लेकिन आपका धैर्य, समर्पण और कड़ी मेहनत हर चुनौती को परास्त कर देता है।
युवा-उद्यमियों को सफलता का मंत्र देते हुए सिन्हा कहते हैं,

"बिजनेस मे आने वाली दिक्कतों और चुनौतियों से घबराने की बजाए उसको हल करने (और निपटारा करने) के तरीकों को ढूँढना चाहिए। बिजनेस के शुरुआती सालों मे राजस्व (रेवेन्यू) से ज्यादा महत्वपूर्ण मार्केट और लोगो के बीच मे अपनी कंपनी की साख (गूड्विल), नाम और सम्मान बनाना होता है।"

आपको बताते चले कि सिन्हा राजनीति मे भी काफी वर्षो से सक्रिय रहे हैं। वह जनसंघ के दिनों से ही बीजेपी से जुड़े रहे हैं। वे बिहार बीजेपी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और दो बार चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष रहे हैं । ऐतिहासिक जेपी आंदोलन मे भी उनकी सक्रियता रही है। वह जयप्रकाश नारायण के निकटतम सहयोगियों में एक रहे हैं। वह 2014 मे बिहार से बीजेपी की ओर से राज्यसभा के लिए चुने गए। आज बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं मे उनका नाम गिना जाता है। बीजेपी ने 2013 मे सिन्हा को दिल्ली विधानसभा चुनाव का सह-प्रभारी बनाया था जब बीजेपी मात्र दो सीटों की कमी से सरकार नहीं बना पाई थी। वह अनेकों बार बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे हैं।


वर्तमान में आर के सिन्हा एसआईएस ग्रुप के चेयरमेन के अलावा बीजेपी से राज्यसभा सांसद एवं कई समाजसेवी संगठनों के संरक्षक है। वह देहारादून के सुविख्यात बोर्डिंग स्कूल (इंडियन पब्लिक स्कूल) भी चलाते हैं। वह पटना के आदि चित्रगुप्त मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं। सिन्हा एक समर्पित समाजसेवी भी हैं। वह गरीबों एवं जरूरतमंदों की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। अपनी एक सामाजिक-मुहिम ‘संगत-पंगत’ के तहत वह सुनिश्चित करते हैं कि किसी गरीब आदमी की जिंदगी इलाज़ के अभाव में न जाने पाए, कोई मेधावी बच्चा अर्थाभाव में उच्च शिक्षा से वंचित न रह जाये । सिन्हा, दहेज-रहित विवाह के घनघोर समर्थक हैं। संगत-पंगत के तत्त्वावधान मे उन्होने अपनी देख-रेख मे अनगिनत सामूहिक एवं दहेज-रहित विवाह सम्पन्न कराये हैं।

 इसी मुहिम के तहत वह जल्द ही दिल्ली में एक मुफ्त बहु विशेषता वाली ओपीडी की व्यवस्था करने वाले हैं जहां गरीब और जरूरतमंद लोग अपना मुफ्त में इलाज करा पाएंगे। शीघ्र ही ऐसे कई और मुफ़्त ओपीडी पटना, कानपुर और लखनऊ में भी खोले जायेंगे।

कहानी एक भारतीय राजकुमारी की जो बनी दुनिया की जांबाज जासूस



यह सच्ची कहानी है नूर इनायत खान की, जो मैसूर के महान शासक टीपू सुल्तान के राजवंश की राजकुमारी थी। बेहद खूबसूरत और मासूमियत से भरा चेहरा, आंखों की गहराई, वीणा पर थिरकती उंगलियां और रूह तक सीधे पहुंचने वाले सूफियाना कलाम के सुरीले बोल… ये सब नूर इनायत खान के  व्यक्तित्व का कभी हिस्सा हुआ करते थे लेकिन नाजियों की तानाशाही नीति और द्वितीय विश्वयुद्ध के शुरू होने की घटना ने इस प्रिंसेस को अंदर तक झकझोर दिया था। यहीं से उसकी जिंदगी ने करवट ली और वह विश्व की एक जांबाज जासूस बन गई। सबसे आश्चर्य की बात है कि वह ब्रिटेन की साम्राज्यवाद की नीति की विरोधी होने के बावजूद भी उनके लिए लड़ी।

नूर इनायत खान परिवार के साथ

नूर इनायत का जन्म 1 जनवरी, 1914 को मॉस्को में हुआ था। उनका पूरा नाम नूर-उन-निशा इनायत खान है। नूर चार भाई-बहन थे,  वे अपने चारो भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी। उनके पिता भारतीय और मां अमेरिकी थीं। उनके पिता हजरत इनायत खान 18 वीं सदी में मैसूर राज्य के टीपू सुल्तान के पड़पोते थे, जिन्होंने भारत के सूफीवाद को पश्चिमी देशों तक पहुंचाया था। वे एक धार्मिक शिक्षक थे, जो परिवार के साथ पहले लंदन और फिर पेरिस में बस गए थे। पूरा परिवार पश्चिमी देशों में ही रहने लगा। वही संगीत की रुचि नूर के भीतर भी जागी और वे बच्चों के लिए जातक कथाओं पर आधारित कहानियां लिखने लगी। उन्हें वीणा बजाने का शौक जूनून की हद तक था।
प्रथम विश्व युद्ध के तुरंत बाद उनका परिवार मॉस्को,रूस से लंदन आ गया था, जहां नूर का बचपन बीता।  1920 में वे फ्रांस चली गई, जहां वे पेरिस के निकट सुरेसनेस के एक घर में अपने परिवार के साथ रहने लगी। यह घर उन्हे सूफी आंदोलन के एक अनुयाई के द्वारा उपहार में मिला था। 1927 में पिता की मृत्यु के बाद उनके ऊपर माँ और छोटे भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी आ गई। स्वभाव से शांत, शर्मीली और संवेदनशील नूर संगीत को जीविका के रूप में इस्तेमाल करने लगी और पियानो की धुन पर संगीत का प्रसार करने लगी। कविता और बच्चों की कहानियाँ लिखकर अपने कैरियर को सँवारने लगी। साथ ही फ्रेंच रेडियो में नियमित योगदान भी देने लगी। 1939 में बौद्धों की जातक कथाओं से प्रभावित होकर उन्होने एक पुस्तक बीस जातक कथाएं  नाम से लंदन से प्रकाशित की। द्वितीय विश्व युद्ध के फैलने के बाद,फ्रांस और जर्मन की लड़ाई के दौरान वे 20जून 1940 को अपने परिवार के साथ समुद्री मार्ग से ब्रिटेन के फालमाउथ, कॉर्नवाल लौट आयीं।







पहले वायु सेना और बाद में ख़ुफ़िया विभाग में भर्ती

अपने पिता के शांतिवादी शिक्षाओं से प्रभावित नूर को नजियों के अत्याचार से गहरा सदमा लगा। जब फ्रांस पर नाज़ी जर्मनी ने हमला किया तो उनके दिमाग़ में उसके ख़िलाफ़ वैचारिक उबाल आ गया। उन्होने अपने भाई विलायत के साथ मिलकर नाजी अत्याचार को कुचलने का निर्णय लिया।  19 नवंबर 1940 को, वे वायु सेना में द्वितीय श्रेणी एयरक्राफ्ट अधिकारी के रूप में शामिल हुईं, जहां उन्हें वायरलेस ऑपरेटर के रूप में प्रशिक्षण हेतु भेजा गया। जून 1941 में उन्होने आरएएफ बॉम्बर कमान के बॉम्बर प्रशिक्षण विद्यालय में आयोग के समक्ष “सशस्त्र बल अधिकारी” के लिए आवेदन किया, जहां उन्हें सहायक अनुभाग अधिकारी के रूप में पदोन्नति प्राप्त हुई।

बाद में नूर को स्पेशल ऑपरेशंस कार्यकारी के रूप में एफ (फ्रांस) की सेक्शन में जुड़ने हेतु भर्ती किया गया और फरवरी 1943 में उन्हें वायु सेना मंत्रालय में तैनात किया गया। उनके वरिष्ठों में गुप्त युद्ध के लिए उनकी उपयुक्तता पर मिश्रित राय बनी और यह महसूस किया गया कि अभी उनका प्रशिक्षण अधूरा है, किन्तु फ्रेंच की अच्छी जानकारी और बोलने की क्षमता ने स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप का ध्यान उन्होने अपनी ओर आकर्षित कर लियाl फलत: उन्हें वायरलेस आपरेशन युग्मित अनुभवी एजेंटों की श्रेणी में एक एक वांछनीय उम्मीदवार के तौर पर प्रस्तुत किया गया। फिर वह बतौर जासूस काम करने के लिए तैयार की गईं और 16-17 जून 1943 में उन्हें जासूसी के लिए रेडियो ऑपरेटर बनाकर फ्रांस भेज दिया गया। उनका कोड नाम ‘मेडेलिन’ रखा गया। वे भेष बदलकर अलग-अलग जगह से संदेश भेजती रहीं।



द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नूर विंस्टन चर्चिल के विश्वसनीय लोगों में से एक थीं। उन्हें सीक्रेट एजेंट बनाकर नाजियों के कब्जे वाले फ्रांस में भेजा गया था। नूर ने पेरिस में तीन महीने से ज्यादा वक्त तक सफलतापूर्वक अपना खुफिया नेटवर्क चलाया और नाजियों की जानकारी ब्रिटेन तक पहुंचाई। पेरिस में 13 अक्टूबर, 1943 को उन्हें जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। इस दौरान खतरनाक कैदी के रूप में उनके साथ व्यवहार किया जाता था। हालांकि इस दौरान उन्होंने दो बार जेल से भागने की कोशिश की, लेकिन असफल रहीं। गेस्टापो के पूर्व अधिकारी हैंस किफर ने उनसे सूचना उगलवाने की खूब कोशिश की, लेकिन वे भी नूर से कुछ भी उगलबा नहीं पाए। 25 नवंबर, 1943 को इनायत एसओई एजेंट जॉन रेनशॉ और लियॉन के साथ सिचरहिट्सडिन्ट्स (एसडी), पेरिस के हेडक्वार्टर से भाग निकलीं, लेकिन वे ज्यादा दूर तक भाग नहीं सकीं और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। बात 27 नवंबर, 1943 की है। अब नूर को पेरिस से जर्मनी ले जाया गया। नवंबर 1943 में उन्हें जर्मनी के फॉर्जेम जेल भेजा गया। इस दौरान भी अधिकारियों ने उनसे खूब पूछताछ की, लेकिन उसने कुछ नहीं बताया।

    जर्मनी में डचाउ में नाजियों का यह यातना कैंप, जहां नूर को गोली मारी गई थी
 उन्हें दस महीने तक बेदर्दी से प्रताड़ित किया गया, फिर भी उन्होंने अपनी जुबान नहीं खोली। नूर वास्तव में एक मजबूत और बहादुर महिला थीं। 11 सिंतबर, 1944 को उन्हे और उसके तीन साथियों को जर्मनी के डकाऊ प्रताड़ना कैंप ले जाया गया, जहां 13 सितंबर, 1944 की सुबह चारों के सिर पर गोली मारने का आदेश सुनाया गया। यद्यपि सबसे पहले नूर को छोडकर उनके तीनों साथियों के सिर पर गोली मार कर हत्या की गई। तत्पश्चात नूर को डराया गया कि वे जिस सूचना को इकट्ठा करने के लिए ब्रिटेन से आई थी, वे उसे बता दे। लेकिन उसने कुछ नहीं बताया, अंतत: उनके भी सिर पर गोली मारकर हत्या कर दी गई। जब उन्हें गोली मारी गई, तो उनके होठों पर शब्द था -“फ्रीडम यानी आजादी”। इस उम्र में इतनी बहादुरी कि जर्मन सैनिक तमाम कोशिशों के बावजूद उनसे कुछ भी नहीं जान पाए, यहां तक कि उनका असली नाम भी नहीं। उसके बाद सभी को शवदाहगृह में दफना दिया गया। मृत्यु के समय उनकी उम्र सिर्फ 30 वर्ष थी।


                                                               ब्रिटेन में नूर इनायत खान की कांसे की प्रतिमा
ब्रिटेन की सरकार ने 2012 में  नूर के बलिदान को सम्मान देते हुए लंदन में उनकी प्रतिमा स्थापित करवाई। ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ की बेटी ऐन ने भारतीय मूल की राजकुमारी की मूर्ति का अनावरण करते हुए सम्मान व्यक्त किया था। ब्रिटिश सरकार ने नूर इनायत खान को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान जॉर्ज क्रास दिया। फ्रांस ने भी अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान-क्रोक्स डी गेयर से उन्हें नवाजा।
भारतीय मूल की पत्रकार श्रावणी घोष ने भारतीय राजकुमारी पर एक किताब ‘स्पाई प्रिसेंस’ लिखी है तथा हॉलीवुड में इन पर ‘Enemy of the Reich’ नाम से फिल्म बन चुकी है।


Friday, 19 February 2016

राष्ट्रविरोधी नारे? मेरे देश में? मैं नहीं सहूँगा!

कुछ न्यूज़ चैनल (आप नाम जानते हैं) और बहुत सारे पत्रकार, जो सीधे तौर पर विपक्ष का खाते हैं, पूरी कोशिश कर रहे हैं की किसी तरह इतना बड़ा मामला आसानी से दब जाये। येन केन प्रकारेण, इनका एक ही मकसद है – पब्लिक की राय को गलत तरीके से तोडना और मरोड़ना।

लेकिन इन मूर्खों शायद ये पता नहीं है की अब इस देश में उनकी नहीं, राष्ट्रवादियों की सरकार चलती है।
 
ट्विटर पे आज लोगों ने जम के ‘मैं नहीं सहूँगा’ का नारा दिया। आपको दिखा रहे हैं कुछ चुने हुए वीडियो क्लिप्स जो लोगों ने खुद तैयार किये हैं

Wednesday, 17 February 2016

इतिहास की 10 सबसे रहस्यमयी तस्वीरें जो आपने कभी न देखी होंगी

1. हिटलर के साथ नेताजी


 भारत से निकल कर नेताजी ने हिटलर से मुलाक़ात की थी और आजाद हिन्द फ़ौज का नेतृत्व करना स्वीकार किया था।

2. वीर सावरकर के साथ नेताजी बोस


वीर सावरकर और नेताजी बोस की मुलाकात सावरकर सदन में हुई थी तब सावरकर जी ने नेताजी को हिटलर 
से मिलने का परामर्श दिया था

3. पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद



राष्ट्रपति बनने के बाद दिल्ली के कश्मीरी गेट में अपनी बग्गी से जाते हुए राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद

4. आइंस्टीन और रबिन्द्रनाथ टैगोर

अमेरिका के प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन और भारत के प्रसिद्ध कवी और लेखक रबिन्द्रनाथ टैगोर की मुलाकात का एक फोटो

5. निकोल टेस्ला और स्वामी विवेकानंद


अमेरिका के मशहूर वैज्ञानिक निकोल टेस्ला की भारत के महान दार्शनिक स्वामी विवेकानंद के साथ एक फोटो

6. नेताजी की गिरफ्तारी



अंग्रेजी सरकार द्वारा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की पहली बार गिरफ्तारी की तस्वीर

7. कोर्ट में नाथूराम गोडसे


महात्मा गाँधी की हत्या के बाद नाथूराम गोडसे और उनके साथी नारायण आप्टे, मदन लाल पाहवा दिल्ली की अदालत में मुकद्दमे की सुनवाई के समय


8. नेताजी परिवार के साथ

 

9. चन्द्र शेखर आजाद का पार्थिव शरीर



 इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क(वर्तमान में आजाद पार्क) में अंग्रेजो से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे चन्द्र शेखर आजाद, जब उनके पास केवल एक गोली बची थी तो उन्होंने उससे खुद को ही मार लिया था ताकि अंग्रेज उन्हें ज़िंदा न पकड़ पाए

10. इंदिरा गाँधी और कपिल देव


1983 में क्रिकेट वर्ल्ड जितने के बाद कप्तान कपिल देव प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के साथ