भारत में शायद ही कोई होगा जो 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध को याद करना चाहता होl इसकी वजह साफ है, 1962 के युद्ध के जख्म इतने गहरे हैं कि कोई भी उन्हें कुरेदना नहीं चाहताl लेकिन ऐसा नहीं है कि 1962 युद्ध ने सिर्फ हमें घाव ही दिए हैंl उस युद्ध ने हमें ये भी सिखाया है कि विषम परिस्थितियों में भी भारतीय सैनिक बहादुरी से न केवल लड़ना जानते हैं, अपनी जान तक देश की सीमाओं की रक्षा के लिए न्यौछावर नहीं करते हैं, बल्कि दुश्मन के दांत भी खट्टे करना जानते हैंl
1962 युद्ध के दौरान लद्दाख के रेज़ांग-ला में भारत के वीर सैनिकों ने चीनी सैनिकों से जो लड़ाई लड़ी थी उसे ना केवल भारतीय फौज बल्कि चीन के साथ-साथ दुनियाभर की सेनाएं भी एक मिसाल के तौर पर देखती हैं और सीख लेना नहीं भूलती l
चीन का तिब्बत पर हमला, फिर कब्जा और दलाई लामा के भागकर भारत में राजनैतिक शरण लेने के बाद से ही भारत और चीन के रिश्तों में बेहद खटास आ चुकी थीl ऐसे में चीन की लद्दाख में घुसपैठ और कई सीमावर्ती इलाकों में कब्जा करने के बाद भारतीय सेना ने भी इन इलाकों में अपनी फॉरवर्ड-पोस्ट बनानी शुरु कर दी थीl भारत का मानना था कि चीन इन सीमावर्ती इलाकों में अपनी पोस्ट या फिर सड़क बनाकर इसलिए अपना अधिकारी जमा रही थी क्योंकि ये इलाके खाली पड़े रहते थेl सालों-साल से वहां आदमी तो क्या परिंदा भी पर नहीं मारता था, इसी का फायदा उठाया चीन नेl जिसके चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इन ठंडे रेगिस्तान और बंजर पड़े लद्दाख के सीमावर्ती इलाकों में अपनी पोस्ट बनाने की आज्ञा दी—जिसे आस्ट्रैलियाई पत्रकार एन. मैक्सवेल ने अपनी किताब ‘इंडियाज चायना वॉर’ में नेहरु की ‘फॉरवर्ड-पोलिसी’ नाम देकर बदनाम करने की कोशिश की हैl
लद्दाख के चुशुल इलाके में करीब 16,000 फीट की उंचाई पर रेज़ांगला दर्रे के करीब भारतीय सेना ने अपनी एक पोस्ट तैयार की थी जिसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी कुमाऊं रेजीमेंट की एक कंपनी को जिसका नेतृत्व कर रहे थे मेजर शैतान सिंह भाटी l 123 जवानों की इस कंपनी में अधिकतर हरियाणा के रेवाड़ी इलाके के अहीर (यादव) शामिल थेl चीनी सेना की नजर चुशुल पर लगी हुई थीl वो किसी भी हालत में चुशुल को अपने कब्जे में करना चाहते थे जिसके मद्देनजर चीनी सैनिकों ने भी इस इलाके में डेरा डाल लिया थाl
इसी क्रम में जब अक्टूबर 1962 में लद्दाख से लेकर नेफा (अरुणाचल प्रदेश) तक भारतीय सैनिकों के पांव उखड़ गए थे और चीनी सेना भारत की सीमा में घुस आई थी, तब रेज़ांग-ला में ही एक मात्र ऐसी लड़ाई लड़ी गई थी जहां भारतीय सैनिक चीन के पीएलए पर भारी पड़ी थीl
17 नवम्बर चीनी सेना ने रेज़ांग-ला में तैनात भारतीय सैनिकों पर जबरदस्त हमला बोल दियाl चीनी सैनिकों ने एक प्लान के तहत रेज़ांग-ला में तैनात सैनिकों को दो तरफ से घेर लिया, जिसके चलते भारतीय सैनिक अपने तोपों का इस्तेमाल नहीं कर पाई लेकिन .303 (थ्री-नॉट-थ्री) और ब्रैन-पिस्टल के जरिए भी कुमाऊं रेजीमेंट के ये 123 जवान चीनी सेना की तोप, मोर्टार और ऑटोमैटिक हथियारों जिनमें मशीन-गन भी शामिल थीं, मुकाबला कर रहे थेl इन जवानों ने अपनी बहादुरी से बड़ी तादाद में चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया लेकिन चीनी सेना लगातार अपने सैनिकों की मदद के लिए रि-इनफोर्समेंट भेज रही थीl
परमवीर चक्र मेजर शैतान सिंह भाटी
मेजर शैतान सिंह खुद कंपनी की पांचों प्लाटून पर पहुंचकर अपने जवानों की हौसला-अफजाई कर रहे थेl इस बीच कुमाऊं कंपनी के लीडर मेजर शैतान सिंह गोलियां लगने से बुरी तरह जख्मी हो गएl दो जवान जब उन्हे उठाकर सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे थे तो चीनी सैनिकों ने उन्हे देख लियाl
शैतान सिंह अपने जवानों की जान किसी भी कीमत पर जोखिम में नहीं डाल सकते थेl उन्होनें खुद को सुरक्षित स्थान पर ले जाना से साफ मना कर दियाl जख्मी हालत में शैतान सिंह अपने जवानों के बीच ही बने रहेl वहीं पर अपनी बंदूक को हाथ में लिए उनकी मौत हो गईl
दो दिनो तक भारतीय सैनिक चीनी पीएलए को रोके रहेl 18 नवम्बर को 123 में से 109 जवान जिनमें कंपनी कमांडर मेजर शैतान सिंह भी शामिल थे देश की रक्षा करते मौत को गले लगा चुके थेl लेकिन इसका नतीजा ये हुआ कि भारतीय सैनिकों की गोलियां तक खत्म हो गईंl बावजूद इसके बचे हुए जवानों ने चीन के सामने घुटने नहीं टेकेंl
भारतीय गुप्तचर एजेंसी रॉ के पूर्व अधिकारी आर के यादव ने अपनी किताब ‘मिशन आर एंड डब्लू’ में रेज़ांगला की लड़ाई का वर्णन करते हुए लिखा है कि इन बचे हुए जवानों में से एक सिंहराम ने बिना किसी हथियार और गोलियों के चीनी सैनिकों को पकड़-पकड़कर मारना शुरु कर दियाl मल्ल-युद्ध में माहिर कुश्तीबाज सिंहराम ने एक-एक चीनी सैनिक को बाल से पकड़ा और पहाड़ी से टकरा-टकराकर मौत के घाट उतार दियाl इस तरह से उसने दस चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दियाl
गीतकार कवि प्रदीप द्वारा लिखा गया देशप्रेम से ओतप्रोत गाना जिसे लता मंगेशकर ने गाकर अमर कर दिया था दरअसल वो रेज़ागला युद्ध को ध्यान में ही रखकर शायद रचा गया था.
गीत के बोल कुछ यूं हैं, “….थी खून से लथपथ काया, फिर भी बंदूक उठाके दस-दस को एक एक ने मारा, फिर गिर गये होश गंवा के,जब अंत समय आया तो कह गये के अब मरते हैं खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफर करते हैंl क्या लोग थे वो दीवाने क्या लोग थे वे अभिमानी जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी….”
बताते है कि चीन ने इस लड़ाई में पांच भारतीय जवानों को युद्धबंदी बना लिया था जबकि नौ जवान बुरी तरह घायल हो हुए थेl भारतीय सैनिकों की बहादुरी से हारकर चीनी सैनिकों ने अब पहाड़ से नीचे उतरने का साहस नहीं दिखाया और चीन कभी भी चुशुल में कब्जा नहीं कर पायाl हरियाणा के रेवाड़ी स्थित इन अहीर जवानों की याद में बनाए गए स्मारक पर लिखा है कि चीन के 1700 जवानों को मौत के घाट उतार दिया थाl हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है कोई नहीं जानता क्योंकि इन लड़ाईयों में वीरगति को प्राप्त हुए जवानों की वीरगाथा सुनाने वाला कोई नहीं है और चीन कभी भी अपने सेना को हुए नुकसान के बारे में नहीं बतायेगा. लेकिन इतना जरुर है कि चीनी सेना को रेज़ांगला में भारी नुकसान उठाना पड़ाl
वीरगति को प्राप्त हुए मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सबसे बड़े पदक परमवीर चक्र से नवाजा गया. मेजर शैतान सिंह और उनके वीर अहीर जवानों की याद में चुशुल के करीब रेज़ांगला में एक युद्ध-स्मारक बनवाया गयाl हर साल 18 नवम्बर को इन वीर सिपाहियों को पूरा देश और सेना याद करना नहीं भूलती है क्योंकि “शहीदों की चितांओं पर लगेंगे हर बरस मेले…देश में मर-मिटने वालों का बस यही एक निशां होगा…”
वतन की पुकार
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