Sunday, 27 March 2016

Video: तो क्या 15-15 करोड़ रूपए में उत्तराखंड में सरकार बचाएंगे Harish Rawat ?



Video Source– Youtube Channel

जो Harish Rawat बीजेपी पर खरीद फरोख्त की राजनीति करने का आरोप लगा रहे थे वो खुद एक स्टिंग में खरीद फरोख्त की राजनीति करते दिखाई दे रहे है

New Delhi, Mar 26: इस वक्त देवभूमि सियासत का नया गढ़ बन गया है. जहां पुरानी राजनीति के नए अध्याय लिखे जा रहे है, वो अध्याय जो अपने साथ राजनीति के कालेपन को भी दिखा रहे है, समाज के उत्थान में ये सियासतदान किस किरदार को निभा रहे है. वो साफ कर रहा है.
उत्तराखंड में पिछले कुछ दिनों से जो कुछ हो रहा है वो सब देख रहे है, कांग्रेस के कुछ विधायकों ने लामबंदी करके अपनी ही पार्टी के मुखिया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, जाहिर सी बात है कि यहां किसी एक की सोच व्यक्तिगत है.


बागी विधायक अचानक से बीजेपी की ढाल बनने लगे है, बीजेपी पर आरोप लग रहे थे कि वो खरीद फरोख्त की राजनीति कर रहे है. तो इस पर बागी विधायकों ने नहले पर दहला चलते हुए Harish Rawat  का ही स्टिंग जारी कर दिया, जिसमे वो खुद खरीद फरोख्त करते दिखाई दे रहे हैं।


उत्तराखंड के बागी विधायकों ने जो वीडियो जारी किया है, उसमे सीएम Harish Rawat  किसी से खरीद फरोख्त की बात कर रहे है, बागी विधायकों का दावा है कि सीएम जिससे बात कर रहे है  उसका नाम उमेश शर्मा है. वीडियों में दिखाई दे रहा है कि बात विधायकों को खरीदने के लिए कैश के इंतजाम की हो रही है.

Sunday, 13 March 2016

JNU में कन्हैया पर हमला: बाल पकड़कर घसीटने वाले ने कहा- सबक सिखाने आया हूं

कन्हैया पर हमला करने वाला विकास।

कन्हैया पर हमला करने वाला विकास।
 
नई दिल्ली. JNU स्टूडेंट्स यूनियन के प्रेसिडेंट कन्हैया पर यूनिवर्सिटी कैम्पस में ही एक शख्स ने गुरुवार को हमला कर दिया। विकास नाम के शख्स को पकड़ लिया गया है और कैम्पस में ही एडमिनिस्ट्रेशन बिल्डिंग में रखा गया है। विकास कन्हैया के बयानों से नाराज था और इसका बदला लेने वहां पहुंचा था।कन्हैया के बाल 
 
 
पकड़कर घसीटा...
 
- सूत्रों के मुताबिक, विकास नाम का यह शख्स ऑटो से जेएनयू कैम्पस पहुंचा था।
- आमतौर पर कैम्पस में जाने के लिए यूनिवर्सिटी से जुड़े किसी शख्स से एंट्री परमिशन दिलानी पड़ती है। लेकिन विकास ऑटो से उतरकर सीधा कैम्पस में पहुंच गया था।
- सिक्युरिटी गार्ड्स ने भी उससे कोई पूछताछ नहीं की।
- बताया जा रहा है कि कैम्पस में पहुंचते ही विकास ने कन्हैया पर हमला बोल दिया और उसके बाल पकड़कर कुछ दूर तक घसीटा।
- इसके बाद कन्हैया के साथियों ने उसे पकड़ लिया और एडमिनिस्ट्रेशन बिल्डिंग में ले गए।
- JNU की तरफ से पुलिस को घटना की इन्फॉर्मेशन दे दी गई है।

 
कन्हैया को मारने वाले पर रखा था 11 लाख का इनाम
 
- हाल ही में जेएनयू कैम्पस में कन्हैया कुमार को गोली मारने पर 11 लाख रुपए के इनाम देने वाले पोस्टर लगाए जाने का मामला सामने आया था।
- ये पोस्टर पूर्वांचल सेना नाम के किसी संगठन और उसके हेड आदर्श शर्मा के नाम से लगाए गए थे।
- हालांकि, पुलिस ने पूर्वांचल सेना के प्रेसिडेंट आदर्श कुमार को अरेस्ट कर लिया है।
- पुलिस ने बताया कि 11 लाख रुपए का इनाम देने का एलान करने वाले आदर्श के अकाउंट में सिर्फ 150 रुपए थे।
- पुलिस आदर्श को हिरासत में लेकर उससे पूछताछ कर रही है।
- शर्मा के खिलाफ पार्लियामेंट स्ट्रीट पुलिस स्टेशन में दिल्ली प्रिवेंशन ऑफ डिफेसमेंट ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट के तहत केस रजिस्टर किया गया है।
- हाल ही में कन्हैया के खिलाफ वूमन हेरेसमेंट का भी एक मामला सामने आया है। इस मामले में उसे साढ़े 3 हजार का जुर्माना भरना पड़ा था।
- शिकायत करने वाली महिला उस वक्त डीयू में टीचर थी। अब वह जेएनयू में टीचर है।
 
हाल ही में सामने आया था कन्हैया का सेना पर बयान देने वाला वीडियो
 
- दो दिन पहले कन्हैया कुमार का नाम एक और विवाद जुड़ था। इसमें मीडिया में आए एक वीडियो में कन्हैया कश्मीर में सिक्युरिटी फोर्सेस के बारे में आपत्तिजनक बयान देते सुना गया है।
- वीडियो में कन्हैया कह रहा है, "हम सैनिकों का सम्मान करते हुए यह बात बोलेंगे कि कश्मीर में महिलाओं का बलात्कार किया जाता है सुरक्षा बलों द्वारा।" हालांकि, ये वीडियो कब का है, इसका पता नहीं चल पाया है।
- इससे पहले राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप में गिरफ्तार कन्हैया को 4 मार्च को रिहा किया गया था।
- उसके बाद कैम्पस लौटने पर उसने भाषण दिया था- "अफजल भी देश का नागरिक था, लेकिन मेरा आइकॉन रोहित है।"
विकास को सिक्युरिटी गार्ड ने पकड़ा।
   विकास को सिक्युरिटी गार्ड ने पकड़ा।
 
कन्हैया ने कहा था- जेएनयू में पढ़ने वाला देशद्रोही नहीं हो सकता
 
- कन्हैया ने कहा था, ''मीडिया लोकतंत्र का फोर्थ पिलर है। जेएनयू लोकतंत्र के लिए खड़ा होने वाला संस्थान।''
- ''जो टैक्स आप देते हैं, उसकी सब्सिडी से हम पढ़ते हैं।''
- ''जेएनयू में पढ़ने वाला कोई देशद्रोही नहीं हो सकता।''
- ''मैं मानता हूं कुछ काले बादल हैं। लेकिन काले बादल के बाद खुशहाली की बारिश होती है। सूखा खत्म होता है।"
- ''ये काले बादल लाल सूरज को छिपा नहीं पाएंगे। हम संविधान की हर बात को सच में उतारेंगे।''
- ''संविधान कहता है- समानता, भाईचारा, लोकतंत्र, समाजवाद। सीमा पर जो जवान लड़ रहा है, जो किसान मर रहा है, उसकी बात की जानी चाहिए। रोहित वेमुला की शहादत बेकार नहीं जाएगी।''

 
क्या है जेएनयू विवाद?
 
जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन का प्रेसिडेंट कन्हैया कुमार (फाइल)
   जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन का प्रेसिडेंट कन्हैया कुमार (फाइल)
 
- जेएनयू में 9 फरवरी को लेफ्ट स्टूडेंट्स के ग्रुप्स ने संसद पर हमले के गुनहगार अफजल गुरु और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के को-फाउंडर मकबूल भट की याद में एक प्रोग्राम ऑर्गनाइज किया था। इसे कल्चरल इवेंट का नाम दिया गया था।
- साबरमती हॉस्टल के सामने शाम 5 बजे उसी प्रोग्राम में कुछ लोगों ने देश विरोधी नारेबाजी की। इसके बाद लेफ्ट और एबीवीपी स्टूडेंट्स के बीच झड़प हुई।
- 10 फरवरी को नारेबाजी का वीडियो सामने आया। दिल्ली पुलिस ने 12 फरवरी को देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया।
- इसके बाद जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन के प्रेसिडेंट कन्हैया कुमार को अरेस्ट कर लिया गया। जबकि खालिद फरार हो गया था।
- बाद में पता चला कि वह जेएनयू कैम्पस में ही था। कुछ दिन बाद उसने सरेंडर कर दिया। वह अभी ज्यूडिशियल कस्टडी में है।
- वहीं, कन्हैया कुमार को दिल्ली हाईकोर्ट ने 6 महीने की इंटरिम बेल दी है। इसी के बाद वह तिहाड़ जेल से छूटा है।

Friday, 4 March 2016

स्मृति ईरानी की ज़िन्दगी ऐसी नहीं थी, कामयाबी को पाने के लिए उन्होंने कोई शोर्टकट नहीं चुना !

एक ज़माने में टीवी सीरियल देखने वाली हाउसवाइव्स की फेवरेट समृति आज बच्चे बच्चे की जुबां पर हैं। सोशल मीडिया हो या whatsapp लोग स्मृति की तारीफ करते नहीं थक रहे। जिस तरह स्मृति ने लोकसभा में विपक्षियों को तगड़ा जवाब दिया है वो वाकई तारीफ़-ए-काबिल हैं। स्मृति ने कम समय में पॉलिटिक्स दुनिया में आज अच्छा मुकाम हासिल कर लिया है। स्मृति की चर्चा आज चारो तरफ है। लेकिन स्मृति की ज़िन्दगी हमेशा से ऐसी नहीं थी। उन्होंने खूब मेहनत और स्ट्रगल किया है। उनके इस कामयाबी को पाने के लिए कोई शोर्टकट नहीं चुना। ऐसे में हमने सोचा क्यों न आज आपको स्मृति के बारे में वो सब बयाता जाए जो आप शायद नहीं जानते।

दिल्ली में जन्मी स्मृति ईरानी एक लोवर मिडिल क्लास फॅमिली से हैं। मॉडलिंग वर्ल्ड में आने के पहले वो मुंबई के बांद्रा के मैकडॉनल्ड्स में वेट्रेस और क्लीनर का काम कर चुकी हैं।

 

स्मृति ईरानी घर चलाने के लिए 10 वीं के बाद से काम करने लगी थी। उन्हें एक ब्यूटी प्रोडक्ट को प्रमोट करने के लिए सिर्फ 200 रुपये मिला करते थे।

 स्मृति एक बंगाली-पंजाबी परिवार से हैं। उनके पिता पंजाबी-महाराष्ट्रियन हैं और माँ बंगाली-आसामी।

 

स्मृति का सपना हमेशा से पत्रकार बनने का था लेकिन जब एक जर्नलिस्ट ने उन्हें इंटरव्यू में रिजेक्ट किया तो उन्होंने ये ख़याल हमेशा के लिए अपने मन से निकाल दिया।

1998 में स्मृति ने फेमिना मिस इंडिया में हिस्सा लिया और वो फाइनलिस्ट भी थी लेकिन वो कम्पटीशन नहीं जीत पाई।

 

स्मृति एक अच्छी डांसर भी हैं। वो मिका सिंह के साथ एक म्यूजिक एल्बम में ठुमका भी लगा चुकी हैं।

2000 में स्मृति की किस्मत पूरी तरह से बदल गयी जब एकता कपूर ने उनको एक शो में स्पॉट किया और उन्हें टीवी शो ‘क्योंकि सास भी कभी बहु थी” में लीड कास्ट किया।

  2001 में स्मृति ने अपने बचपन के दोस्त ज़ुबीन ईरानी से शादी की जो पहले से शादी शुदा थे। स्मृति के के दो बच्चे हैं ज़ोहर और ज़ोइश। स्मृति की एक सौतेली बेटी भी है शनेल।

 स्मृति ने 2 टीवी शो ‘विरुद्ध’ और ‘थोड़ी सी ज़मीन और थोडा सा आसमान’ प्रोड्यूस भी किया है।

स्मृति का राजनेतिक कैरियर 2003 में शुरू हुआ जब उन्होंने BJP की सदस्यता ग्रहण की और दिल्ली के चांदनी चौक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ी।

साल 2011 में वो गुजरात से राज्यसभा की सांसद चुनी गयी और इसके बाद जो हुआ वो सब जानते हैं।

 

 

550 साल से ध्यान मग्न है यह संत, जानिए पीछे की पूरी कहानी

हम बात कर रहे है हिमाचल प्रदेश में एक छोटे से शहर लाहुल सपिति के गियू गाँव की गाँव मे एक ममी मिली है जो ध्यान मग्न है। हालाकि जितने भी विशेषज्ञों ने उस पर रिसर्च की उन्होंने उसको ममी मानने से इनकार कर दिया, क्योंकि उस ध्यान मग्न संत के बाल और नाखून अभी भी बढ़ रहें हैं, और सबसे खास बात यह है कि यह ममी ध्यान मग्न अवस्था में मिली है।

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इसी विषय में एक बार इंडियन एक्सप्रेस अखबार में एक रिपोर्ट भी कुछ समय पूर्व प्रकाशित हुई थी। अनोखी बात यह है कि आज तक विश्व में जितनी भी ममी पाई गए हैं वह सब लेटी हुई अवस्था में है, इस ममी की ध्यान मग्न अवस्था ही इसे विशेष बनाती है और इसी कारण वश इसे योग युक्त कहां जा रहा है।

 अगर आप इस ममी को ध्यानपूर्वक देखेंगे तो आप को पता चलेगा कि यह ममी ध्यान अवस्था में बैठी है बिल्कुल
एक संत की तरह जो एक तपस्या में लीन रहता है। गांव वाले कहते है यह ममी पहले नौगांव में ही रखी गई थी और एक
स्तूप में स्थापित थी। जैसे कि यह ममी तिब्बत में है ऐसा हो सकता है कि यह ममी बौद्ध भिक्षु की हो।

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एक भयंकर भूकंप जो 1974 में आया था, उस भूकंप के कारण यह ममी मलबे के अंदर दब गई थी। यह ममी दोबारा तब मिली जब 1995 में ITBP  के जवान सड़क निर्माण के लिए काम कर रहे थे। उस समय ममी को बाहर निकालते हुए जब उसके सिर पर कुदाल लगा तो ममी के सिर से खून आने लगा जिसका निशान आप आज भी वहां देख सकते हैं।

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ITBP ने ममी को 2009 तक अपने कैंपस में रखा। बाद में ग्रामीण इसे अपने साथ ले गए और अपनी धरोहर मानते हुए उन्होंने उसे अपने गांव में स्थापित किया। ममी को एक शीशे के केबिन में रखा गया है और उसकी देखभाल ग्रामीणों ने खुद संभाल रखी है। गांव वाले बारी-बारी इस ममी की देखभाल के लिए अपनी ड्यूटी लगाते हैं।

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जब ITBP ने इस ममी को बाहर निकाला था तब विशेषज्ञों ने इसकी जांच की थी और तब यह पता चला था कि यह ममी 545 वर्ष पुरानी है, लेकिन आश्चर्य तो इस बात का है कि बिना किसी लेप के और जमीन में दबे रहने के बावजूद भी इस ममी की अवस्था आज भी वैसे ही है जैसे 500 वर्ष पूर्व थी। यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि गियू गांव साल के 7-8 महीने भारी बर्फबारी होने के कारण बाकी पूरे देश से कटा रहता है।

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गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि 15वीं शताब्दी में एक महान संत तपस्यारत गांव में रहते थे एक बार उस समय के दौरान गांव  मे बिछुओ का बहुत प्रकोप हो गया तब बिछुओ के प्रकोप से बचने के लिए इस महान संत ने ध्यान करने की सलाह दी।



जब संत ने समाधि लगाई तो गांव में बिना बारिश के ही इंद्रधनुष निकला और गांव बिछुओ के प्रकोप से मुक्त हो गया।
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एक मान्यता और भी है, जिसके मुताबिक यह मम्मी बौद्ध भिक्षु सांगला तेनजिंग की है, जो तिब्बत से होते हुए भारत आए थे और उन्होंने इसी गांव में समाधि लगाई थी।

यह कोई पहली जीवित मम्मी नहीं देखी गई है, ऐसा होता आया है और भारत के विभिन्न हिस्सों में ध्यान मग्न अवस्था में मम्मी मिलना एक आम सी बात है।
आंध्र प्रदेश की एक गुफा में छन भर के लिए कुछ लोग अनाम संत से मिले थे। लोगों का मानना है कि वह संत उसी समय ध्यान से उठे थे और संयोग से उनसे मिले थे। उनका पहला प्रश्न वैदिक संस्कृति में था, “राजा परीक्षित कहां है?” जब उन्हें ज्ञात हुआ कि यह कलयुग है तो वह पुनः ध्यान मुद्रा में चले गए।
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अगर हम उन लोगों की बात माने तो पता चलता है कि वह संत करीब 5000 वर्षों से जिंदा थे। हिमालय में आज भी ऐसे कई अदृश्य कंदराएँ अस्तित्व में है जहां बड़े-बड़े तपस्वी तपस्या में लीन रहते हैं।

Thursday, 3 March 2016

गांव बना पहेली, रोजाना लग जाती है 2-3 घरों में आग

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नई दिल्ली। आपने कई बार अचानक से होने वाली रहस्मयी घटनाओं के बारे में पहले कई बार सुना होगा। ऐसे ही पश्चिम बंगाल के पुरूलिया जिले के बेगुनकोदार रेलवे स्टेशन को लोग भुतहा स्टेशन के नाम से जानते हैं। यह स्टेशन अयोध्या हिल के पास स्थित है। इसमें एक और खास बात है कि ये स्टेशन गूगल सर्च पर भी दुनिया के सबसे भुतहा स्टेशनों में पहले नंबर पर आता है। इस रहेले स्टेशन के बारे में 1969 में शुरू हुई एक अफवाह के बाद यहां आवागमन बंद कर दिया गया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि कोई भी रेल कर्मचारी इस स्टेशन पर जाने के लिए तैयार नहीं होता।

कर रहे हैं वजह ढूंढने की कोशिश

बेगुनकोदार के पास बारतेला में पिछले कुछ दिनों से कुछ अजीबो-गरीब घटनाएं हो रही हैं जिन्होंने लोगों को चौंकाकर रखा हुआ है। इस गांव में 25 दिसंबर से अब तक तकरीबन 60-65 बार आग लगने की घटना हो चुकी है। ग्रामीण अभी तक यहां अचानक से लगने वाली आग की वजह नहीं समझ पाए हैं। इससे ग्रामीण दहशत में हैं और आग लगने की असली वजह ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं।

लगातार हो रही हैं ऐसी घटनाएं

यह गांव कोटशिला पुलिस थाने के अंतर्गत आता है। हालांकि पुलिस इस मामले की तह तक जाने की कोशिश कर रही है। वहीं ग्रामीण बुरी तरह से डरे हुए हैं और अपने स्तर पर भी जांच कर रहे हैं। इस गांव में आग लगने का पहला मामला 25 दिसंबर को हुआ। इसके बाद से लगभग रोज दो-तीन घरों में ऐसी घटनाएं हो रही हैं।

इन घरों में ज्यादा हो रही है घटना

गांव के लोग इसे महज भूत-प्रेत का कारनामा नहीं मान रहे और बल्कि इसकी असली वजह को जानने की भी कोशिश कर रहे हैं। ग्रामीणों का मानना है कि आग लगने की ज्यादातर घटनाएं तालाब के पास के घरों में हो रही हैं। ऐसा हो सकता है कि तालाब से निकलने वाली किसी गैस की वजह से बार-बार आग लग रही हो।

समाज के विरोध के बावजूद एक शख्स ने पत्नी की 13वीं में पैसे खर्च करने के बजाय गांव के स्कूल में लगाए डेढ़ लाख रु.

जिंदगी कब किस मोड़ पर किसका साथ छोड़ दे, कहा नहीं जा सकता। बावजूद इसके कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपनों के दुनिया से चले जाने के बाद भी समाज के बारे में सोचते हैं और समाज के लिए कुछ कर उस सदमे से उबरने की कोशिश करते हैं भले ही वो समाज उनका साथ ना दे। कुछ ऐसा ही किया महाराष्ट्र के अकोला में रहने वाले अविनाश नकट ने। इस साल 5 फरवरी को जब उनकी पत्नी का देहांत हुआ तो उन्होंने तय किया कि वो अपनी पत्नी की तेरहवीं पर खर्च होने वाले पैसे का इस्तेमाल अपने गांव के स्कूल को डिजिटल बनाने में करेंगे। हालांकि समाज के ज्यादातर लोगों ने उनका विरोध किया, लेकिन धुन के पक्के और समाज के प्रति बेहतर सोच रखने वाले अविनाश अपने फैसले से पीछे नहीं हटे और उन्होंने करीब डेढ़ लाख रुपये की लागत से अपने गांव के स्कूल को डिजिटल किया है। इसका असर यह हुआ कि कल तक जो लोग उनके फैसले पर ऊंगली उठा रहे थे, आज वो उनकी तारीफ कर रहे हैं।

अविनाश महाराष्ट्र अकोला के टांडली बजरक नाम के गांव के रहने वाले हैं। उनका एक हंसता खेलता परिवार था। उनके परिवार में उनकी पत्नी रूपाली, दो बेटियां समृद्धि और आनंदी थी। लेकिन इस परिवार में एक ऐसा भूचाल आया कि सब कुछ बदल गया। अविनाश ने योरस्टोरी को बताया,
"3 फरवरी तक सब कुछ सामान्य था, मेरी पत्नी उस दिन खुद ही घर का सामान बाजार से लेकर आयी थीं। साथ ही बच्चों को स्कूल से लाने का काम भी उन्होंने ही किया था, लेकिन उसी शाम उनकी थोड़ी तबीयत खराब हुई, जिसके बाद रूपाली के भाई जो खुद एक डॉक्टर हैं, उन्होने उसे कुछ दवाईयां दी जो आमतौर पर डॉक्टर प्राथमिक उपचार के लिये देते हैं।  लेकिन रूपाली की तबीयत ठीक नहीं हुई और बुखार बना रहा। हम दोनों ने तय किया कि हम शाम को डॉक्टर के पास जाएंगे इस बीच रूपाली की नाक से खून बहने लगा और कुछ देर बाद अपने आप बंद भी हो गया। हालात की गंभीरता को समझते हुए मैं रूपाली को डॉक्टर के पास ले गया। जब अस्पताल पहुंचा तो मुझे पता चला की रूपाली को ल्यूकोमिया हो गया है।"




ल्यूकोमिया का इलाज अकोला में संभव नहीं था इस वजह से अविनाश ने तय किया कि वो अपनी पत्नी को नागपुर ले जाएंगे। इसके बाद अविनाश ने एंबुलेंस बुलवाया और रूपाली के साथ रूपाली के भाई और अपने भांजे को लेकर नागपुर के लिए रवाना हो गये। हालांकि अविनाश ने रूपाली को उनकी बीमारी के बारे में कुछ नहीं बताया था। रास्ते में दोनों पति-पत्नी बातें करते रहे और कुछ दूर जाने के बाद रूपाली की आंखें धीरे धीरे बंद होने लगी। तो अविनाश ने सोचा कि शायद रूपाली को नींद आ रही है, इस तरह जब तक ये नागपुर के अस्पताल में पहुंचते तब तक रूपाली इस दुनिया को छोड़ चुकी थी। डॉक्टरों ने बताया कि रूपाली की मौत ब्रेन हैमरेज की वजह से हुई है।



अपनी पत्नी रूपाली से बेहद प्यार करने वाले अविनाश अंदर से टूट गये थे, लेकिन अपनी दो बेटियों के खातिर उन्होने अपने को संभाला और घर पहुंचे। अविनाश बताते हैं कि


"जब मैं अन्तिम संस्कार कर घर पहुंचा तो घर पर काफी भीड़ थी। यह देखकर मैंने सोचा कि अगर घर में ऐसे ही रोना चलता रहा तो मेरे बच्चों पर इसका बहुत गलत असर जाएगा। मैंने सभी लोगों को कहा कि मैं कल से काम पर जा रहा हूं और बच्चे भी कल से स्कूल जाएंगें। साथ ही मैंने उन सब से ये भी कहा कि मृत्यु के बाद होने वाली कोई रस्म अब ना की जाये। इस बात का विरोध मेरे परिवार को छोड़कर वहां मौजूद सब लोगों ने किया लेकिन मैं अपने फैसले पर अडिग रहा। मैंने तय किया कि अपनी पत्नी की तेरहवीं पर खर्च होने वाले पैसे का इस्तेमाल गांव के स्कूल पर खर्च करुंगा, जिसकी हालत काफी खराब है।"


अविनाश ने बताया,
“हमारे गांव के जिला परिषद स्कूल की हालत काफी खराब थी। ये स्कूल पहली क्लास से 7वीं तक है, मैं भी इसी स्कूल का पढ़ा हुआ हूं हमारे समय में इस स्कूल में एक कक्षा में 35 बच्चे पढ़ा करते थे लेकिन आज संसाधनों की कमी के कारण पूरे स्कूल में 35 से 40 बच्चे पढ़ते हैं। इसलिए मैंने इस स्कूल पर पैसा खर्च करने का फैसला लिया।” 
इस तरह अविनाश ने अपनी पत्नी रूपाली की मृत्यु के 5वें दिन बाद ही स्कूल में रेनोवेशन का काम शुरू कर दिया और दीवारों को कार्टून कैरेक्टरों से सजा दिया, ताकि बच्चे इन्हें देखकर स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित हों साथ ही उन्होने स्कूल में पंखे, कंप्यूटर, प्रोजेक्टर, कालीन आदि लगवाये। शुरू में उनके इस काम का बहुत विरोध हुआ खासतौर पर महिलाएं उन्हें ऐसा ना करने के लिए बहुत समझाती थीं, लेकिन अविनाश ने उनकी एक नहीं सुनी।


अविनाश कहते हैं कि “हमारे गांव में गरीबी बहुत है और वहां के ज्यादातर लोग किसान हैं, सूखे की वजह से वहां किसान आत्महत्या भी करते हैं, तब मैं उनको समझाता था कि अगर पैसा नही है तो कर्ज लेकर मृत्योपरांत होने वाली रस्मों को ना करें क्योंकि जाने वाला तो चला गया है अगर इस पैसे को हम गांव के विकास में खर्च करेंगे तो इससे गांव का ही विकास होगा।” लोगों को इस तरह की सलाह देने वाले अविनाश का कहना है कि जब उनके साथ ये घटना घटी तो उन्होने तय किया को वो लोगों को इसके लिए प्रोत्साहित करते हैं और खुद अगर ऐसा नहीं करेंगे तो गलत होगा। इसलिए उन्होंने फैसला लिया कि वो इस पैसा का इस्तेमाल गांव के विकास पर खर्च करेंगे।


अविनाश पुरानी बातों को याद करते हुए कहते हैं कि करीब दो महीने पहले उनकी पत्नी ने स्कूल की हालत सुधारने को लेकर उनसे बात की थी, लेकिन अचानक जब ये घटना हुई तो उन्होंने अपनी पत्नी के सपने को सच करने के बारे में सोचा। अविनाश कहते हैं कि उस वक्त भले ही दो एक परिवार उनके साथ खड़े थे लेकिन आज एक दो परिवार को छोड़ पूरा गांव उनके फैसले के साथ खड़ा है।

रामायण कोई काल्पनिक घटना नहीं, सच साबित करते हैं ये 21 तथ्य

रामायण और भगवान राम से हिन्दुओं की आस्था जुड़ी हुई है, लेकिन अकसर ये सवाल उठते रहे हैं कि क्या सच में भगवान राम का इस धरती पर जन्म हुआ था? क्या रावण और हनुमान थे? हम उनको तो किसी के सामने नहीं ला सकते लेकिन उनके अस्तित्व के प्रमाण को आपके सामने ला सकते हैं. भारत और श्रीलंका में कुछ ऐसी जगहें हैं जो इस बात का प्रमाण देती हैं कि रामायण में लिखी हर बात सच है.

1. Cobra Hood cave, Sri Lanka

कहा जाता है कि रावण जब सीता का अपहरण कर के श्रीलंका पहुंचा तो सबसे पहले सीता जी को इसी जगह रखा था. इस गुफ़ा पर हुई नक्काशी इस बात का प्रमाण देती है.

2. Existence of Hanuman Garhi

यह वही जगह है जहां हनुमान जी ने भगवान राम का इंतज़ार किया था. रामायण में इस जगह के बारे में लिखा है, अयोध्या के पास इस जगह पर आज एक हनुमान मंदिर भी है.

3. भगवान हनुमान के पद चिन्ह

जब हनुमान जी ने सीता जी को खोजने के लिए समुद्र पार किया था तो उन्होंने भव्य रूप धारण किया था. इसीलिए जब वो श्रीलंका पहुंचे तो उनके पैर के निशान वहां बन गए थे, जो आज भी वहां मौजूद हैं.

4. राम सेतु

रामायण और भगवान राम के होने का ये सबसे बड़ा सबूत है. समुद्र के ऊपर श्रीलंका तक बने इस सेतु के बारे में रामायण में लिखा है और इसकी खोज भी की जा चुकी है. ये सेतु पत्थरों से बना है और ये पत्थर पानी पर तैरते हैं.

5. पुरातत्व विभाग ने भी माना

भगवान राम के होने की बात खुद पुरातत्व विभाग भी मानता है. पुरातत्व विभाग के अनुसार 1,750,000 साल पहले श्रीलंका में ही सबसे पहले इंसानों के घर होने की बात कही गई है और राम सेतु भी उसी काल का है.

6. पानी में तैरने वाले पत्थर

राम सेतु एक ऐसा पुल था जिसके पत्थर पानी पर तैरते थे. सुनामी के बाद रामेश्वरम में उन पत्थरों में से कुछ अलग हो कर जमीन पर आ गए थे. शोधकर्ताओं नें जब उसे दोबारा पानी में फेंका तो वो तैर रहे थे, जबकि वहां के किसी और आम पत्थर को पानी में डालने से वो डूब जाते थे.

7. द्रोणागिरी पर्वत

युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण को मेघनाथ ने मूर्छित कर दिया था और उनकी जान जा रही थी, तब हनुमान जी संजीवनी लेने द्रोणागिरी पर्वत गए थे. उन्हें संजीवनी की पहचान नहीं थी तो उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का निर्णय लिया. युद्ध के बाद उन्होंने द्रोणागिरी को यथास्थान पहुंचा दिया. उस पर्वत पर आज भी वो निशान मौजूद हैं जहां से हनुमान जी ने उसे तोड़ा था.

8. श्रीलंका में हिमालय की जड़ी-बूटी

श्रीलंका के उस स्थान पर जहां लक्ष्मण को संजीवनी दी गई थी, वहां हिमालय की दुर्लभ जड़ी-बूटियों के अंश मिले हैं. जबकि पूरे श्रीलंका में ऐसा नहीं होता और हिमालय की जड़ी-बूटियों का श्रीलंका में पाया जाना इस बात का बहुत बड़ा प्रमाण है.

9. अशोक वाटिका

हरण के पश्चात सीता माता को अशोक वाटिका में रखा गया था, क्योंकि सीता जी ने रावण के महल में रहने से मना कर दिया था. आज उस जगह को Hakgala Botanical Garden कहते हैं और जहां सीता जी को रखा गया था उस स्थान को 'सीता एल्या' कहा जाता है.

10. लेपाक्षी मंदिर

सीता हरण के बाद जब रावण उन्हें आकाश मार्ग से लंका ले जा रहा था तब उसे रोकने के लिए जटायू आए थे. रावण ने उनका वध कर दिया था. आकाश से जटायू इसी जगह गिरे थे. यहां आज एक मंदिर है जिसे लेपाक्षी मंदिर के नाम से जाना जाता है.

11. टस्क हाथी

रामायण के एक अध्याय, सुंदर कांड में श्रीलंका की रखवाली के लिए विशालकाय हाथी का विवरण है, जिन्हें हनुमान जी ने धराशाही किया था. पुरातत्व विभाग को श्रीलंका में ऐसे ही हाथियों के अवशेष मिले हैं जिनका आकार आम हाथियों से बहुत ज़्यादा है.

12. कोंडा कट्टू गाला

हनुमान जी के लंका जलाने के बाद रावण भयभीत हो गया था कि हनुमान जी दोबारा हमला न कर दें, इसलिए रावण ने सीता जी को अशोक वाटिका से हटा कर कोंडा कट्टू गाला में रखा था. यहां पुरातत्व विभाग को कई गुफ़ाएं मिली हैं जो रावण के महल तक जाती हैं.

13. रावण का महल

पुरातत्व विभाग को श्रीलंका में एक महल मिला है जिसे रामायण काल का ही बताया जाता है. यहां से कई गुप्त रास्ते निकलते हैं जो उस शहर के मुख्य केंद्रो तक जाते हैं. ध्यान से देखने पर ये पता चलता है कि ये रास्ते इंसानों द्वारा बनाए गए हैं.

14. कालानियां

रावण के मरने के बाद विभीषण को लंका का राजा बनाया गया था. विभीषण ने अपना महल कालानियां में बनाया था जो कैलानी नदी के किनारे था. पुरातत्व विभाग को इस नदी के किनारे उस महल के कुछ अवशेष भी मिले हैं.

15. लंका जलने के अवशेष

रामायण के अनुसार हनुमान जी ने पूरे लंका को आग लगा दी थी, जिसके प्रमाण उस जगह से मिलते हैं. जलने के बाद उस जगह की मिट्टी काली हो गई है जबकि उसके आस-पास की मिट्टी का रंग आज भी वही है.

16. दिवूरमपोला, श्रीलंका

रावण से सीता को बचाने के बाद भगवान राम ने उन्हें अपनी पवित्रता साबित करने को कहा था, जिसके लिए सीता जी ने अग्नि परीक्षा दी थी. आज भी उस जगह पर वो पेड़ मौजूद है जिसके नीचे सीता जी ने इस परीक्षा को दिया था. उस पेड़ के नीचे वहां के लोग आज भी अहम फ़ैसले लेते हैं.

17. रामलिंगम

रावण को मारने के बाद भगवान राम को पश्चाताप करना था क्योंकि उनके हाथ से एक ब्राहमण का कत्ल हुआ था. इसके लिए उन्होंने शिव की आराधना की थी. भगवान शिव ने उन्हें चार शिवलिंग बनाने के लिए कहा. एक शिवलिंग सीता जी ने बनाया जो रेत का था. दो शिवलिंग हनुमान जी कैलाश से लेकर आए थे और एक शिवलिंग भगवान राम ने अपने हाथ से बनाया था, जो आज भी उस मंदिर में हैं और इसलिए ही इस जगह को रामलिंगम कहते हैं.

18. जानकी मंदिर

नेपाल के जनकपुर शहर में जानकी मंदिर है. रामायण के अनुसार सीता माता के पिता का नाम जनक था और इस शहर का नाम उन्हीं के नाम पर जनकपुर रखा गया था. साथ ही सीता माता को जानकी के नाम से भी जाना जाता है और उसी नाम पर इस मंदिर का नाम पड़ा है जानकी मंदिर. यहां सीता माता के दर्शन के लिए हर रोज़ हज़ारो श्रद्धालु आते हैं.

19. पंचवटी

नासिक के पास आज भी पंचवटी तपोवन है, जहां अयोध्या से वनवास काटने के लिए निकले भगवान राम, सीता माता और लक्ष्मण रुके थे. यहीं लक्ष्मण ने सूपनखा की नाक काटी थी.

20. कोणेश्वरम मंदिर

रावण भगवान शिव की अराधना करता था और उसने भगवान शिव के लिए इस मंदिर की भी स्थापना करवाई. यह दुनिया का इकलौता मंदिर है जहां भगवान से ज़्यादा उनके भक्त रावण की आकृति बनी हुई है. इस मंदिर में बनी एक आकृति में रावण के दस सिरों को दिखाया गया है. कहा जाता है कि रावण के दस सिर थे और उसके दस सिर पर रखे दस मुकुट उसके दस जगहों के अधिपत्य को दर्शाता है.

21. गर्म पानी के कुएं

रावण ने कोणेश्वरम मंदिर के पास गर्म पानी के कुएं बनवाए थे, जो आज भी वहां मौजूद हैं.

“काका माला वचावा” बाजीराव के शनिवार वाडा में गूंजते इतिहास के ये तीन शब्द !

“बाजीराव ने मस्तानी से मोहब्बत की है अय्याशी नहीं ” ये डायलॉग उतना ही सुपरहिट है जितना बाजीराव का मस्तानी के प्रति प्रेम पर कितने लोग है जो इसके आगे की कहानी जानते है बाजीराव और मस्तानी की प्रेम कहानी के आगे एक और स्क्रिप्ट लिखी गयी जो बदले की भावना और सत्ता के लालच से भरी हुई है जिसने इतिहास का रुख ही बदल दिया जो शनिवार वाडा कभी बाजीराव और काशीबाई के प्रेम की दास्ताँ कहता था आज वहां अमावस्या की रात को किसी के कराहने की आवाज़े आती है l 



बाजीराव-मस्तानी


हाल ही में रिलीज हुई फिल्म बाजीराव-मस्तानी को दर्शकों ने खूब सराहा, फिल्म के किरदारों को तो पसंद किया ही गया लेकिन साथ ही साथ मराठा साम्राज्य को बुलंदियों पर ले जाने वाले बाजीराव-मस्तानी की प्रेम कहानी भी दर्शकों को छू गई। फिल्म के अंत में आप सब ने देखा होगा की किस तरह से काशी बायीं के बेटे नाना साहेब ने मस्तानी को कैद कर दिया और अंत आप सबके सामने है l अब कहानी शुरू होती है बाजीराव के वंशजो की !

शनिवारवाडा




वर्ष 1746 ईसवी में बाजीराव ने अपने महल शनिवारवाडा का निर्माण करवाया था। बाजीराव की मृत्यु के पश्चात शनिवाडा में अधिकार को लेकर लड़ाई-झगड़े शुरू हो गए थे।
शनिवार वाडा फोर्ट, महाराष्ट्र के पुणे में स्तिथ है। इस किले की नीव शनिवार के दिन रखी गई थी इसलिए इसका नाम शनिवार वाडा पड़ा। यह फोर्ट अपनी भव्यता और ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है।  शनिवार वाडा फोर्ट का निर्माण राजस्थान के ठेकेदारो ने किया था जिन्हे की काम पूर्ण होने के बाद पेशवा ने नाईक की उपाधि से नवाज़ा था।



इस किले में लगी टीक की लकड़ी जुन्नार के  जंगलो से, पत्थर चिंचवाड़ की खदानों से तथा चुना जेजुरी की खदानों से लाया गया था। इस महल में 27 फ़रवरी 1828 को अज्ञात कारणों से भयंकर आग लगी थी।  आग को पूरी तरह बुझाने में सात दिन लग गए थे। इस से किले परिसर में बनी कई इमारते पूरी तरह नष्ट हो गई थी। उनके अब केवल अवशेष बचे है।  अब यदि हम इस किले की संरचना की बात करे तो किले में प्रवेश करने के लिए पांच दरवाज़े है।  यह किला 1818 तक पेशवाओं की प्रमुख गद्दी रहा था,जुन 1818 में पेशवा बाजीराव द्वितीय ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सर जॉन मैलकम को यह गद्दी सौप दी और इस तरह पेशवाओ की शान रहे इस किले पर अंग्रेजो का अधिकार हो गया।   लेकिन इस किले के साथ एक काला अध्याय भी जुड़ा है। 

नारायण राव, नानासाहेब पेशवा के सबसे छोटे पुत्र थे। अपने दोनों भाइयों की मृत्यु के पश्चात नारायण राव को पेशवा बना तो दिया गया लेकिन उम्र काफी कम होने की वजह से सत्ता का संचालन रघुनाथ राव और उनकी पत्नी आनंदी को ही सौंपा गया।

 

पेशवा नाना साहेब के तीन पुत्र थे विशव राव, महादेव राव और नारायण राव।  सबसे बड़े पुत्र विशव राव पानीपत की तीसरी लड़ाई में मारे गए थे। नाना साहेब की मृत्यु के उपरान्त महादेव राव को गद्दी पर बैठाया गया। पानीपत की तीसरी  लड़ाई में महादेव राव पर ही रणनीति बनाने की पूरी जिम्मेदारी थी लेकिन उनकी बनाई हुई कुछ रणनीतियां बुरी तरह विफल रही थी फलस्वरूप इस युद्ध में मराठों की बुरी तरह हार हुई थी।  कहते है की इस युद्ध में मराठो के 70000 सैनिक मारे गए थे।  महादेव राव युद्ध में अपनी भाई की मृत्यु और मराठो की हार के लिए खुद को जिम्मेदार मानते थे।  जिसके कारण वो बहुत ज्यादा तनाव में रहते थे और इसी कारण गद्दी पर बैठने के कुछ दिनों बाद ही उनकी बिमारी से मृत्यु हो गई।
उनकी मृत्यु के पश्चात मात्र 16 साल की उम्र में नारायण राव पेशवा बने।

नारायण राव को पेशवा बनाने से काका (चाचा) राघोबा और काकी (चाची) अनादीबाई खुश नहीं थे।



 रघुनाथ राव यानि राघोबा और उनकी पत्नी के भीतर सत्ता का लालच हिलोरे मार रहा था, वे साम्राज्य की देखभाल नहीं उसे हथियाने के सपने देख रहे थे। दोनों कुछ भी करके नारायण राव को अपने रास्ते से हटाना चाहते थे। नारायण राव को पेशवा बनाने से काका (चाचा) राघोबा और काकी (चाची) अनादीबाई खुश नहीं थे। वो खुद पेशवा बनना चाहते थे उनको एक बालक का पेशवा बनना पसंद नहीं आ रहा था। दूसरी तरफ नारायण राव भी अपने काका को ख़ास पसंद नहीं करते थे क्योकि उन्हें लगता था की उनके काका ने एक बार उनके बड़े भाई महादेव राव की ह्त्या का प्रयास किया था।  इस तरह दोनों एक दूसरे को शक की नज़र से देखते थे।  हालात तब और भी विकट हो गए जब दोनों के सलाहकारों ने दोनों को एक दूसरे के विरुद्ध भड़काया। इसका परिणाम यह हुआ की नारायण राव ने अपने काका को घर में ही नज़रबंद करवा दिया।

सुमेर गर्दी: ‘नारायण राव ला धारा’

 
 
रघुनाथ राव और उनकी पत्नी इस बात से बहुत क्रोधित हुए, वे अब देर नहीं कर सकते थे, उन्होंने भील सरदार, सुमेर गर्दी को पत्र लिखकर नारायण राव को गिरफ्तार करने के लिए बुलाया।
उनके साम्राज्य में ही भीलों का एक शिकारी कबीला रहता था जो की गार्दी  कहलाते थे।  वो बहुत ही मारक लड़ाके थे। नारायण राव के साथ उनके सम्बन्ध खराब थे लेकिन राघोबा को वो पसंद करते थे।  इसी का फायदा उठाते हुए राघोबा ने उनके मुखिया सुमेर सिंह गार्दी को एक पत्र भेजा जिसमे उन्होंने लिखा ‘नारायण राव ला धारा’ जिसका मतलब था नारायण राव को बंदी बनाओ।

अनादी बायीं : ‘नारायण राव ला मारा’



लेकिन अनादी बायीं , अपने पति रघुनाथ राव से भी दो कदम आगे थी। उसके पत्र में गिरफ्तारी नहीं बल्कि नारायण राव की हत्या करने का हुक्म जारी कर दिया।
अनादि बाई को यहाँ एक खूबसूरत मौक़ा नज़र आया और उसने पत्र का एक अक्षर बदल दिया और कर दिया ‘नारायण राव ला मारा’  जिसका मतलब था नारायण राव को मार दो।

अच्छा अवसर




 सुमेर सिंह और नारायण राव के संबंध पहले से ही अच्छे नहीं थे, इसलिए सुमेर सिंह को भी बदला लेने का एक अच्छा अवसर मिल गया। पत्र मिलते ही गार्दियों के एक समूह ने रात को घात लगाकर महल पर हमला कर दिया। वो रास्ते की हर बाधा को हटाते हुए नारायण राव के कक्ष की और बढे। जब नारायण राव ने देखा की गार्दी हथियार लेकर खून बहाते हुए उसकी तरफ आ रहे है तो वो अपनी जान बचाने के लिए अपने काका के कक्ष की और “काका माला वचाव” (काका मुझे बचाओ) कहते हुए भागा। 

“काका माला वचावा” बाजीराव के शनिवार वाडा में गूंजते इतिहास के ये तीन शब्द !

“काका माला वचावा”


सुमेर सिंह ने नारायण राव पर जरा भी रहम नहीं बरता, उसने शनिवारवाडा में घुस कर नारायण राव पर आक्रमण कर दिया। नारायण राव अपनी जान बचाने के लिए महल के कोने-कोने में भागे, “काका माला वचावा” चिल्लाते हुए पर अपने चाचा के कक्ष तक पहुँचने से पहले ही वो पकड़ा गया और उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए गए। 


इतिहासकारो में मतभेद 


 
मात्र 18 वर्ष की उम्र में नारायण राव, सुमेर सिंह की तलवार की भेंट चढ़ गए। यहाँ पर इतिहासकारो में थोड़ा सा मतभेद है कुछ उस बात का समर्थन करते है की  नारायण राव अपने काका के सामने अपनी जान बचाने की गुहार करता रहा पर उसके काका ने कुछ नहीं किया और गार्दी ने राघोबा की आँखों के सामने उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए। लाश के टुकड़ो को बर्तन में भरकर रात को ही महल से बाहर ले जाकर नदी में बहा दिया गया।


महल में आग

 
वर्ष 1818 तक यह महल पेशवाओं के ही हाथ में रहा लेकिन वर्ष 1828 में इस महल में आग लग गई थी जिस कारण एक शनिवारवाडा का एक बड़ा हिस्सा जलकर खाक हो गया था
ये आग कैसे लगी, क्यों लगी, कोई नहीं जानता लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि हर अमावस की रात इस महल से किसी की करहाने की आवाज आती है। कोई मदद के लिए पुकारता है लेकिन कौन….ये कोई नहीं जानता।

नारायण राव की आत्मा


बहुत से लोग कहते हैं कि आज भी इस महल में नारायण राव की आत्मा कैद है, जो मौत का बदला तो नहीं ले पा रही लेकिन मदद की तलाश जरूर कर रही है l कहते है की किले में उसी बच्चे नारायण राव की आत्मा आज भी भटकती है और उसके द्वारा बोले गए आखिरी शब्द “काका माला वचाव” आज भी किले में सुनाई देते है।

पारलौकिक

  
किसी समय में जो महल अपनी कारीगरी, अपनी बनावट और संरचना के लिए जाना जाता था आज वही महल अपने भीतर होने वाली पारलौकिक घटनाओं के चलते देश के भूतहा स्थानों में शुमार हो गया है।