Friday, 4 March 2016

550 साल से ध्यान मग्न है यह संत, जानिए पीछे की पूरी कहानी

हम बात कर रहे है हिमाचल प्रदेश में एक छोटे से शहर लाहुल सपिति के गियू गाँव की गाँव मे एक ममी मिली है जो ध्यान मग्न है। हालाकि जितने भी विशेषज्ञों ने उस पर रिसर्च की उन्होंने उसको ममी मानने से इनकार कर दिया, क्योंकि उस ध्यान मग्न संत के बाल और नाखून अभी भी बढ़ रहें हैं, और सबसे खास बात यह है कि यह ममी ध्यान मग्न अवस्था में मिली है।

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इसी विषय में एक बार इंडियन एक्सप्रेस अखबार में एक रिपोर्ट भी कुछ समय पूर्व प्रकाशित हुई थी। अनोखी बात यह है कि आज तक विश्व में जितनी भी ममी पाई गए हैं वह सब लेटी हुई अवस्था में है, इस ममी की ध्यान मग्न अवस्था ही इसे विशेष बनाती है और इसी कारण वश इसे योग युक्त कहां जा रहा है।

 अगर आप इस ममी को ध्यानपूर्वक देखेंगे तो आप को पता चलेगा कि यह ममी ध्यान अवस्था में बैठी है बिल्कुल
एक संत की तरह जो एक तपस्या में लीन रहता है। गांव वाले कहते है यह ममी पहले नौगांव में ही रखी गई थी और एक
स्तूप में स्थापित थी। जैसे कि यह ममी तिब्बत में है ऐसा हो सकता है कि यह ममी बौद्ध भिक्षु की हो।

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एक भयंकर भूकंप जो 1974 में आया था, उस भूकंप के कारण यह ममी मलबे के अंदर दब गई थी। यह ममी दोबारा तब मिली जब 1995 में ITBP  के जवान सड़क निर्माण के लिए काम कर रहे थे। उस समय ममी को बाहर निकालते हुए जब उसके सिर पर कुदाल लगा तो ममी के सिर से खून आने लगा जिसका निशान आप आज भी वहां देख सकते हैं।

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ITBP ने ममी को 2009 तक अपने कैंपस में रखा। बाद में ग्रामीण इसे अपने साथ ले गए और अपनी धरोहर मानते हुए उन्होंने उसे अपने गांव में स्थापित किया। ममी को एक शीशे के केबिन में रखा गया है और उसकी देखभाल ग्रामीणों ने खुद संभाल रखी है। गांव वाले बारी-बारी इस ममी की देखभाल के लिए अपनी ड्यूटी लगाते हैं।

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जब ITBP ने इस ममी को बाहर निकाला था तब विशेषज्ञों ने इसकी जांच की थी और तब यह पता चला था कि यह ममी 545 वर्ष पुरानी है, लेकिन आश्चर्य तो इस बात का है कि बिना किसी लेप के और जमीन में दबे रहने के बावजूद भी इस ममी की अवस्था आज भी वैसे ही है जैसे 500 वर्ष पूर्व थी। यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि गियू गांव साल के 7-8 महीने भारी बर्फबारी होने के कारण बाकी पूरे देश से कटा रहता है।

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गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि 15वीं शताब्दी में एक महान संत तपस्यारत गांव में रहते थे एक बार उस समय के दौरान गांव  मे बिछुओ का बहुत प्रकोप हो गया तब बिछुओ के प्रकोप से बचने के लिए इस महान संत ने ध्यान करने की सलाह दी।



जब संत ने समाधि लगाई तो गांव में बिना बारिश के ही इंद्रधनुष निकला और गांव बिछुओ के प्रकोप से मुक्त हो गया।
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एक मान्यता और भी है, जिसके मुताबिक यह मम्मी बौद्ध भिक्षु सांगला तेनजिंग की है, जो तिब्बत से होते हुए भारत आए थे और उन्होंने इसी गांव में समाधि लगाई थी।

यह कोई पहली जीवित मम्मी नहीं देखी गई है, ऐसा होता आया है और भारत के विभिन्न हिस्सों में ध्यान मग्न अवस्था में मम्मी मिलना एक आम सी बात है।
आंध्र प्रदेश की एक गुफा में छन भर के लिए कुछ लोग अनाम संत से मिले थे। लोगों का मानना है कि वह संत उसी समय ध्यान से उठे थे और संयोग से उनसे मिले थे। उनका पहला प्रश्न वैदिक संस्कृति में था, “राजा परीक्षित कहां है?” जब उन्हें ज्ञात हुआ कि यह कलयुग है तो वह पुनः ध्यान मुद्रा में चले गए।
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अगर हम उन लोगों की बात माने तो पता चलता है कि वह संत करीब 5000 वर्षों से जिंदा थे। हिमालय में आज भी ऐसे कई अदृश्य कंदराएँ अस्तित्व में है जहां बड़े-बड़े तपस्वी तपस्या में लीन रहते हैं।

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