Saturday, 27 August 2016

एक बार अंग्रेज़ मैकोले का 1835 मे लिखा ये पत्र पढ़ लीजिये आप हैरान रह जाएंगे । Rajiv Dixit

हिन्दी मे पढ़े क्या लिखा अंग्रेज़ macaulay ने 1835 मे अंग्रेज़ो की संसद को !!!


 मैं भारत के कोने कोने मे घूमा हूँ मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया जो भिखारी हो चोर हो !
इस देश में मैंने इतनी धन दोलत देखी है इतने ऊंचे चारित्रिक आदर्श गुणवान मनुष्य देखे हैं की मैं नहीं समझता हम इस देश को जीत पाएंगे , जब तक इसकी रीड की हड्डी को नहीं तोड़ देते !
जो है इसकी आध्यात्मिक संस्कृति और इसकी विरासत !
इस लिए मैं प्रस्ताव रखता हूँ ! की हम पुरातन शिक्षा व्यवस्था और संस्कृति को बादल डाले !
क्यूंकि यदि भारतीय सोचने लगे की जो भी विदेशी है और अँग्रेजी है वही अच्छा है और उनकी अपनी चीजों से बेहतर है तो वे अपने आत्म गौरव और अपनी ही संस्कृति को भुलाने लगेंगे !! और वैसे बन जाएंगे जैसा हम चाहते है ! एक पूरी तरह से दमित देश !!
और बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है की macaulay अपने इस मकसद मे कामयाब हुआ !!
और जैसा उसने कहा था की मैं भारत की शिक्षा व्यवस्था को ऐसा बना दूंगा की इस मे पढ़ के निकलने वाला व्यक्ति सिर्फ शक्ल से भारतीय होगा ! और अकल से पूरा अंग्रेज़ होगा !!
और यही आज हमारे सामने है दोस्तो ! आज हम देखते है देश के युवा पूरी तरह काले अंग्रेज़ बनते जा रहे है !!
उनकी अँग्रेजी भाषा बोलने पर गर्व होता है !!
अपनी भाषा बोलने मे शर्म आती है !!
madam बोलने मे कोई शर्म नहीं आती !
श्री मती बोलने मे शर्म आती है !!
अँग्रेजी गाने सुनने मे गर्व होता है !!
मोबाइल मे अँग्रेजी tone लगाने मे गर्व होता है !!


विदेशी समान प्रयोग करने मे गर्व होता है !
विदेशी कपड़े विदेशी जूते विदेशी hair style बड़े गर्व से कहते है मेरी ये चीज इस देश की है उस देश की है !ये made in uk है ये made इन america है !!
अपने बच्चो को convent school पढ़ाने मे गर्व होता है !!
बच्चा ज्यादा अच्छी अँग्रेजी बोलने लगे तो बहुत गर्व ! हिन्दी मे बात करे तो अनपद !
विदेशी खेल क्रिकेट से प्रेम कुशती से नफरत !!!
विदेशी कंपनियो pizza hut macdonald kfc पर जाकर कुछ खाना तो गर्व करना !!
और गरीब रेहड़ी वाले भाई से कुछ खाना तो शर्म !!
अपने देश धर्म संस्कृति को गालिया देने मे सबसे आगे !! सारे साधू संत इनको चोर ठग नजर आते है !!
लेकिन कोई ईसाई मिशनरी अँग्रेजी मे बोलता देखे तो जैसे बहुत समझदार लगता है !!
करोड़ो वर्ष पुराने आयुर्वेद को गालिया ! और अँग्रेजी ऐलोपैथी को तालिया !!!
विदेशी त्योहार वैलंटाइन मनाने पर गर्व !! स्वामी विवेकानद का जन्मदिन याद नहीं !!!!
दोस्तो macaulay अपनी चाल मे कामयाब हुआ !! और ये सब उसने कैसे किया !!अगर आपका बच्चा शक्ल से भारतीय और अकल से अंग्रेज़ होता जा रहा है !
तो एक बार जरूर देखे आपको जवाब मिल जाएगा !
जय हिन्द


Tuesday, 3 May 2016

समझौता ब्लास्ट केस में सामने आया भारतीय राजनीति का सबसे घिनौना चेहरा


डॉ. प्रवीण तिवारी

मझौता ब्लास्ट में एनआईए पर राजनैतिक दबाव की छाप साफ देखने को मिल रही है. ब्लास्ट किसने और कैसे किए, से ज्यादा जोर इस बात पर दिखाई पड़ रहा था कि ये ब्लास्ट अभिनव भारत से जुड़े लोगों ने किए हैं. असीमानंद और प्रज्ञा दो ऐसे चेहरे थे, जो भगवा पहनते भी थे. इनका इस्तेमाल आरएसएस और वीएचपी तक पहुंचने के लिए किया जा रहा था.
इधर, सुशील कुमार शिंदे, पी. चिदंबरम, दिग्विजय सिंह जैसे तमाम कांग्रेसी नेताओं की बातें इस ओर इशारा कर रही थीं कि हिंदू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद के जुमले को किसी तरह लोगों की जुबान पर चढ़ा दिया जाए. एटीएस और एनआईए सभी की जांच का आधार, इकबालिया बयान और एक बाइक दिखाई पड़ती है.
इधर, एनआईए की जांच इस बात पर टिकी रही कि सिम कार्ड एक ही दुकान से खरीदे गए, एक जैसे एक्सप्लोसिव का इस्तेमाल किया गया. कई गवाहों के इकबालिया बयानों के आधार पर ये कहानी बुनी गई जो इस ओर इशारा कर रही थीं कि कैसे असीमानंद और कर्नल पुरोहित के मन में आतंकवादी घटनाओं में हिंदुओं के मारे जाने का गुस्सा था.
ये बातें किसी मीटिंग में कहना भी एक आधार बनाया गया. गवाहों ने ये कहा कि उनके सामने इस तरह की बातें कही गईं. गवाहों के जो अधिकारिक बयान सामने आए उसमें उन्होंने तमाम मीटिंग्स में मौजूद रहने की बात भी कही, लेकिन अब ये गवाह इस जांच की सच्चाई बयान कर रहे हैं.
इस पूरी जांच में गवाहों के मुकरने के बाद नया मोड़ आ गया है. कैप्टन नितिन जोशी जो कि इस मामले के अहम गवाह हैं, उन्होंने जांच पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. नितिन जोशी के मुताबिक उनके साथ मारपीट की गई. उनके परिवार और उन्हें झूठे मामलों में फंसाने की साजिश रची गई.
उन पर दबाव बनाया गया कि वो अपने बयान में ये कहें कि उन्होने कर्नल पुरोहित के पास आरडीएक्स देखा था, साथ ही बम का बदला बम से लेने की बात कही थी. दबाव में नितिन जोशी ने ये बयान दिया भी.
जब नितिन जोशी पर सवाल खड़े किए गए कि आखिर वो अब तक इस मसले पर चुप क्‍यों रहे, तो उन्होंने बताया कि वो पहले भी 2010 में मानवाधिकार आयोग में इस बारे में शिकायत कर चुके हैं. वो बेहद डरे हुए थे, इसीलिए इस मामले में कुछ भी कह नहीं पा रहे थे.
नितिन ऐसे अकेले गवाह नहीं हैं, जो जबरदस्ती बयान दिलवाए जाने की बात कह रहे हैं. इस मामले के अब तक 19 गवाह इसी तरह की बात कह चुके हैं. एक बात बहुत साफ है कि जांच एजेंसियां भगवा आतंकवाद की एक स्क्रिप्ट लिखने में जुटी हुई थीं.
ये राजनीति का एक ऐसा घिनौना स्तर है जो इस ओर इशारा करता है कि हमारे देश में मतदाताओं की मानसिकता को लेकर राजनैतिक दल क्या सोचते हैं.
सवाल ये भी उठ रहा है कि अब गवाह खुद को सुरक्षित कैसे महसूस कर रहे हैं, या एनआईए पर वर्तमान सरकार का भी तो दबाव हो सकता है?
ये सवाल उठना लाजिमी है, लेकिन ये भी गौर करने वाली बात है कि इसी सरकार को रोकने के लिए ये पूरी कहानी बुनी जा रही थी. एनआईए डायरेक्टर शरद कुमार अमेरिका से वापस आते ही कह चुके हैं कि कर्नल पुरोहित के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं. ये बात अपने आप में कई गहरे सवाल खड़े करती है.
यही नहीं इधर, आर्मी के एक सर्विंग ऑफिसर को गिरफ्तार किया गया और उसे यातनाएं तक दी गईं. उनके इकबालिया बयान को भगवा आतंकवाद का आधार बनाया गया और अब जांच एजेंसी कह रही है कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं.
ये बात सही है कि असीमानंद और साध्वी प्रज्ञा जैसे चेहरों का उग्र हिंदुत्व से कुछ जुड़ाव दिखता है, लेकिन ये भी सच है कि इस उग्र हिंदुत्व को पहले भगवा आतंकवाद का जामा पहनाया गया और फिर इन चेहरों को आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद से जोड़ने की कोशिश की गई.
इस कोशिश में जांच एजेंसियां उस वक्त भी नाकाम रही लेकिन जांच का ये तरीका इन संगठनों को आतंकी संगठन बताने की कोशिश को बेनकाब कर रहा है.

कॉमरेड, तुम्हारा पोस्टर ब्वॉय लफंगा और नंगा है!

 

मुझे हैरत इस बात की कतई नहीं कि वामपंथी पतित हैं, मैं तो बस यह सोचता हूं कि आखिर वे और कितना नीचे गिरेंगे, गिर सकते हैं......
ज.ने.वि. छात्रसंघ का वर्तमान अध्यक्ष फिलहाल इनका पोस्टर ब्वॉय है, दो दिनों की बिहार यात्रा पर है, आज़ादी ढूंढने निकला है, पर मैं वामी गिरोह के इस नए 'मसीहा' के बारे में दो-तीन जानकारियां आपसे साझा कर लेता हूं....
1.यह लौंडा अपनी नेतागिरी चमकाने तब निकला है, जब इसके चक्कर में आकर ज.ने.वि. के कई छात्र (और उनमें से कुछ मासूम) भी हो सकते हैं, अनिश्चितकालीन भूख-हड़ताल पर बैठे हैं. उपनिवेशवादी मानसिकता से ग्रस्त एक मीडिया संस्थान को दिए साक्षात्कार में इस नटवरलाल ने उसमें शिरकत और समर्थन की बात कही थी. अब ज़रा यह बताओ कि भूख-हड़ताल दिल्ली में, ज.ने.वि. के एड-ब्लॉक पर और तुम राजधानी पटना में क्या मूली उखाड़ने आए हो बे..???
2. इस लौंडे की वायवीय उ़ड़ानों पर जब सवाल उठे, तो इसने कहा कि प्रायोजक इसका खर्च उठाते हैं. हां बेटे, बिल्कुल उठाते हैं. अब ज़रा जान लो कि तुम्हारे प्रायोजक कौन हैं? दिल्ली में कांग्रेस का एक दिग्गज नेता जहां इसका प्रायोजक है, जिसने एनजीओ के माध्यम से पैसा पूल कर इसे पूरे देश में पोस्टर-ब्वॉय बनाना चाहा है, तो बिहार में यह शराब माफिया की गोद का खिलौना है.....
3. जी हां, कल इस लौंडे के प्रायोजक वही कुख्यात शराब माफिया विनोद जायसवाल थे, जो सीवान से एमएलसी का चुनाव भी लड़ चुके थे. भले ही, उसमें उन्हें अपने ही पूर्व सिपहसालार टुन्ना पांड़े से शिकस्त मिली (पांड़ेजी भाजपा के उम्मीदवार थे, शराब माफिया थे, लेकिन छोटे स्तर के...स्थानीय). जायसवाल अंतर-राज्यीय शराब माफिया माने जाते हैं...बड़ेवाले. वह शहाबुद्दीन के दाहिने हाथ भी थे (इस बात पर गौर करें).
4. कल एयरपोर्ट से लेकर पूरे पटना तक इस लौंडे का सारा प्रायोजन इन्हीं स्वनामधन्य जायसवाल जी ने करवाया. अब इस प्रायोजन के साथ इस लंपट के मुंह से शराबबंदी के खिलाफ निकली बकवास को जोड़कर देखिए. दो और दो का जोड़ चार समझ मे आ जाएगा.
5. बड़ी गाड़ियों के काफिले, पटना के आइटी चौराहा पर बड़ा पोस्टर (जो आजतक येचुरी, करात और डी राजा को भी नसीब नहीं हुआ), एस के मेमोरियल हॉल में बड़ा कार्यक्रम और ऊपर से जंगलराज के मसीहा लालू यादव के साथ डेढ़ घंटे की गुप्त मीटिंग. खिचड़ी क्या पका रहे हो, नटवरलाल और किसके लिए......
6. आज चंदू (ज.ने.वि छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष, जिनकी हत्या का आरोपी शहाबुद्दीन है) की आत्मा तृप्त हो गयी होगी. लालू यादव के चरण-चुंबन तक तो फिर भी ठीक था, लेकिन शहाबुद्दीन के सिपहसालार जायसवाल की गोद में गिर पड़नेवाला यह लफंगा भी ज.ने.वि. का छात्रसंघ-अध्यक्ष है. चंदू, हम शर्मिंदा हैं.......
7. और अंत में, वामी गिरोह के इस प्रतिनिधि लौंडे की आज़ादी का नमूना आज उस छात्र को दिख गया, जिसने शांतिपूर्ण तरीके से जब नटवरलाल का विरोध किया, तो वामी कारकुनों ने उसकी हॉकी स्टिक और लात-घूंसो से जमकर पिटाई की......
शर्म को भी शर्म आ गयी, पर हाय रे वामियों....तुमको कब आएगी....
- Vyalok Pathak

ऑगस्टा घोटाला : यूपीए शासन के बाद अब फिर पूर्व वायुसेना प्रमुख त्यागी से पूछताछ करेगी CBI


पूर्व वायु सेना प्रमुख एसपी त्यागी और पूर्व उप वायु सेना प्रमुख जेएस गुजराल से सीबीआई फिर ऑगस्टा वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलिकॉप्टर सौदे में भ्रष्टाचार की जांच के लिए पूछताछ करेगी.
उल्लेखनीय है कि यूपीए (कांग्रेस) शासनकाल में  इन दोनों से 2013 में विस्तार से पूछताछ की गई थी लेकिन नए दौर के पूछताछ की आवश्यकता एक इतालवी अदालत के सात अप्रैल के आदेश के बाद हुई.
सीबीआई सूत्रों ने बताया कि जहां एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) जेएस गुजराल को शनिवार को पूछताछ के लिए उपस्थित होने को कहा गया है, वहीं एसपी त्यागी से सोमवार को पूछताछ की जाएगी.
गौरतलब है कि  त्यागी ने 31 दिसंबर 2005 को भारतीय वायु सेना प्रमुख का कार्यभार संभाला था और वह 2007 में सेवानिवृत्त हुए.
मिलान की अपीलीय अदालत ने इस बात का ब्योरा दिया है कि कैसे हेलिकॉप्टर निर्माता फिनमेकैनिका और ऑगस्टा वेस्टलैंड ने सौदा हासिल करने के लिए बिचौलियों के जरिए भारतीय अधिकारियों को कथित तौर पर रिश्वत दी. अदालत ने अपने आदेश में कई बिंदुओं पर त्यागी के नाम का उल्लेख किया है.
सीबीआई को मिलान की अदालत के आदेश की प्रति मिल गई है जिसके आधार पर उसने त्यागी और गुजरात से पूछताछ करने के लिए नयी प्रश्नावली तैयार की है.
त्यागी ने अपने खिलाफ आरोपों का खंडन किया है और दावा किया कि सीमा को कम करने का फैसला गुजराल समेत वरिष्ठ अधिकारियों के एक समूह ने किया था.
सीबीआई ने अब तक कहा है कि गुजराल से एक गवाह के तौर पर पूछताछ की गई है लेकिन इस बात पर चुप्पी साध ली कि क्या उनका दर्जा वही बरकरार रहेगा.
सीबीआई ने मामले में त्यागी और 13 अन्य लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है. इसमें त्यागी के रिश्ते के भाई और यूरोपीय बिचौलिये भी शामिल हैं.
सूत्रों ने संकेत दिया कि हाल ही में मिलान (इटली) की एक अदालत द्वारा ऑगस्टा वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलीकाप्टर सौदे में भ्रष्टाचार के आरोपों में दो व्यक्तियों को सजा सुनाए जाने के बाद त्यागी से पूछताछ जरूरी हो गई थी.
पूर्व वायु सेना प्रमुख पर आरोप है कि उन्होंने वीवीआईपी हेलीकाप्टरों की ऊंचाई को कथित रूप से कम किया ताकि ऑगस्टा वेस्टलैंड को भी बोली में शामिल किया जा सके.

केजरीवाल को मिली पीएम की जानकारी, क्या अब पूछेंगे सोनिया-राहुल की शैक्षणिक योग्यता

 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शैक्षणिक योग्यता पर गतिरोध के बीच गुजरात विश्वविद्यालय ने आज उनके एमए की डिग्री को साझा करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के बाहरी छात्र के तौर पर उन्हें 62.3 फीसदी अंक हासिल हुए.
केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा गुजरात विश्वविद्यालय को निर्देश दिया गया था कि डिग्री से संबंधित सूचना वह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को मुहैया कराए जिन्होंने हाल में सीआईसी की पारदर्शिता को लेकर आलोचना की थी.
सोशल मीडिया में चर्चा है कि ऑगस्टा वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर घोटाले में आरोपों में घिरी इतालवी मूल की भारतीय नागरिक सोनिया गांधी पर से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए केजरीवाल ने पीएम मोदी की शैक्षणिक योग्यता का मुद्दा उछाला था.
ऐसे में सोशल मीडिया में सवाल पूछा जा रहा है कि केजरीवाल जिनकी पार्टी को कान्ग्रेस की 'बी' टीम माना जाता है, क्या अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी की शैक्षणिक योग्यता पर भी आरटीआई आवेदन करेंगे?
बहरहाल, गुजरात विश्वविद्यालय के कुलपति एम एन पटेल ने जानकारी दी है कि, नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने 1983 में राजनीति विज्ञान में एमए की परीक्षा पास की और बाहरी छात्र के तौर पर 800 में से 499 अंक हासिल किए जो 62.3 फीसदी है.
केजरीवाल ने आरटीआई आवेदन का जवाब देने के लिए सीआईसी को पत्र लिखकर उनके चुनावी फोटो पहचान पत्र की मांग की थी और कहा कि वह जहां आरटीआई आवेदकों की सूचना साझा करने को तैयार हैं वहीं सीआईसी को प्रधानमंत्री की शैक्षणिक योग्यता का खुलासा करने के आदेश देना चाहिए.
केजरीवाल के पत्र के बाद सीआईसी ने शुक्रवार को दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय को आदेश दिया कि उनकी शैक्षणिक योग्यता का खुलासा करें. दिल्ली विश्वविद्यालय से उन्होंने कला में स्नातक (बीए) और गुजरात विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री हासिल की थी.
कुलपति पटेल ने कहा कि उन्हें अभी तक सीआईसी का आदेश नहीं मिला है लेकिन उन्हें मीडिया से इस बारे में पता चला और आदेश प्राप्त होने पर वह संबंधित आवेदकों को ब्यौरा सौंपेंगे.
पटेल ने कहा, कई आरटीआई आवेदन के माध्यम से ब्यौरा (मोदी की डिग्री के बारे में) मांगा गया था और इसे विश्वविद्यालय के समक्ष दायर किया गया था लेकिन तकनीकी आधार पर आटीआई कानून के तहत हम इसे साझा करने की स्थिति में नहीं थे.
पटेल ने कहा, अंक का ब्यौरा केवल उम्मीदवार को मुहैया कराया जा सकता है और हम विश्वविद्यालय के 20 वर्षों से ज्यादा के रिकॉर्ड मुहैया नहीं कराते. मोदी की बीए डिग्री का विवरण पूछे जाने पर पटेल ने कहा कि उनके पास यह नहीं है.
पटेल ने ब्यौरा देते हुए कहा, मोदी ने बाहरी छात्र के तौर पर एमए किया. उन्हें एमए प्रथम वर्ष में 400 अंक में 237 अंक हासिल हुए, एमए द्वितीय वर्ष में 400 में से 262 अंक हासिल हुए.
उन्होंने कहा, एमए दूसरे वर्ष में मोदी को राजनीति विज्ञान में 64 अंक हासिल हुए, यूरोपीय और सामाजिक राजनीतिक विचार में 62 अंक, आधुनिक भारत, राजनीति विश्लेषण में 69 अंक ओर राजनीति मनोविज्ञान में 67 अंक हासिल हुए.
केजरीवाल के पत्र पर कार्रवाई करते हुए सीआईसी ने दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय से कहा था कि नरेन्द्र दामोदरदास मोदी के नाम से 1978 में (डीयू से स्नातक) और 1983 में (जीयू से एमए) की डिग्री को खोजें और आवेदक केजरीवाल को यथाशीघ्र मुहैया कराएं.
दिल्ली के मुख्यमंत्री के फोटो पहचान पत्र के बारे में सूचना मांगने के नीरज पांडेय से जुड़े मामले में मुख्य सूचना आयुक्त आचार्युलू ने केजरीवाल से जवाब मांगा कि एक विधायक के तौर पर क्यों नहीं उन्हें आरटीआई कानून के तहत सार्वजनिक अधिकारी बनाया जाए और क्यों नहीं उनकी पार्टी को भी कानून के दायरे में लाया जाए.
आचार्युलू ने कहा था कि केजरीवाल ने अपने जवाब में अपने बारे में सूचना सार्वजनिक करने पर आपत्ति नहीं जताई लेकिन हंसराज जैन मामले का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री की शैक्षणिक योग्यता पर सूचना की मांग उठाई.

Monday, 2 May 2016

पैगम्बर मुहम्मद साहब (सल्ल.) ने कहा है कि जिस देश में रहो उससे मुहब्बत करो

राजीव शर्मा, कोलसिया
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हमने दुनिया का नक्शा बनते आैर बिगड़ते देखा है। ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब हिंदुस्तान के सीने पर भी परदेसी फौज के घोड़ों की टापें सुनार्इ देती थीं। हमने उन लोगों के किस्से भी किताबें में पढ़े हैं जिनकी तलवारें सिर्फ बेकसूर लोगों के खून से प्यास बुझाती थीं।
मैं इतिहास में सबकुछ जानने का दावा नहीं कर सकता लेकिन जितना जान सका हूं उसके आधार पर मुझे अतीत में दो महान घटनाएं एेसी नजर आती हैं जब विजेता ने लाशों पर फतह नहीं पार्इ, अपनी जीत का जश्न नहीं मनाया आैर किसी कमजोर का गला नहीं दबाया। बल्कि युद्घ जीतकर भी उन्होंने लोगों का दिल जीत लिया।
पहली घटना है- श्रीराम की लंका पर विजय। उस लंका पर जिसके बारे में कहा जाता है कि वह सोने से बनी थी। तब श्रीराम के पास विशाल सेना थी, बहादुर साथी थे आैर हथियारों की भी कोर्इ कमी नहीं थी लेकिन उन्होंने जीती हुर्इ लंका विभीषण को सौंप दी।
वे चाहते तो लंका के राजा बन सकते थे। वहां आराम की जिंदगी गुजार सकते थे लेकिन उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि मुझे मां के कदमों की मिट्टी आैर मेरी मातृभूमि स्वर्ग से भी ज्यादा प्रिय हैं।
दूसरी घटना है पैगम्बर मुहम्मद साहब (सल्ल.) के जीवन की। हिजरत के कर्इ साल बाद वे मदीने से मक्का आए थे। एक वह दौर था जब मक्का के लोग उनकी जान के प्यासे हो गए। तब भी उन्होंने युद्घ का मार्ग नहीं अपनाया।
उनके चाचा अबू तालिब गुजर चुके थे, उनकी बीवी खदीजा का भी स्वर्गवास हो चुका था। मां आैर बाप ताे बहुत पहले गुजर चुके थे। वे बिल्कुल अकेले पड़ चुके थे तब मक्का के कुरैश उनसे बदला लेने काे तैयार हुए। वे हर कीमत पर उनकी जान लेने को आमादा थे।
एेसे में पैगम्बर मुहम्मद साहब (सल्ल.) को अपने रब की आेर से हुक्म हुआ आैर वे मक्का छोड़कर शांतिपूर्वक मदीना चले गए। मदीना के लोगों ने उनका दिल खोलकर स्वागत किया मगर मक्का के कुरैश यह भी नहीं चाहते थे।
उनकी मंशा थी कि मुहम्मद (सल्ल.) को खत्म कर दिया जाए। वे फौज लेकर मदीना की आेर चल पड़े तब अपने साथियों, उनके बीवी-बच्चों आैर आत्मरक्षा के लिए पैगम्बर मुहम्मद साहब (सल्ल.) ने रणभूमि की आेर प्रस्थान किया तथा वे विजयी हुए।
मक्का के लोगों ने उनके साथ जितना दुष्टता का बर्ताव किया था मदीना के लोग उतने ही हमदर्द थे। उन्होंने हर कदम पर उनका साथ दिया आैर कोर्इ भी संकट वे सबसे पहले खुद पर लेना चाहते थे लेकिन मुहम्मद साहब (सल्ल.) को खुद से ज्यादा अपने साथियों की फिक्र रहती।
मुहम्मद (सल्ल.) को मक्का की धरती से भी बहुत प्रेम था। यही वो जगह थी जहां उनकी प्यारी मां आमिना, पिता अब्दुल्लाह के कदम पड़े थे। इसी धरती पर काबा था जहां इबादत करना उनका सबसे बड़ा खाब था।
… आैर अपनी मातृभूमि किसे अच्छी नहीं लगती? मदीने में उन्हें वैसी तकलीफ नहीं थी जैसी मक्का के लोगों ने दी थी। फिर भी उनका मन हमेशा वहां जाने के लिए उत्सुक रहता था।
देशप्रेम क्या होता है? मुझे यह बताने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि हर देश में महान देशप्रेमी हुए हैं, अमर बलिदानी पैदा हुए हैं। मैं पैगम्बर मुहम्मद साहब (सल्ल.) को भी उसी श्रेणी का एक महान देशप्रेमी मानता हूं जिसने अपने वतन के लिए कर्इ कुर्बानियां दीं। उनके कर्इ साथी जंग में शहीद हुए।
मक्का उनका घर था आैर वहां जाने का उन्हें पूरा हक था लेकिन कुरैश नहीं चाहते थे कि वे पूरी जिंदगी में कभी वहां लौटकर आएं। मुहम्मद साहब (सल्ल.) के पास संसाधन नहीं थे, बहुत बड़ी सेना नहीं थी, लेकिन वे सिर्फ दो बातों के दम पर मैदान में डटे रहे। न सिर्फ डटे रहे बल्कि दुश्मनों को शिकस्त भी दी। इनमें पहली बात थी – ईश्वर और उसकी न्यायप्रियता पर अटूट भरोसा, और दूसरी – सच्चाई।
जब आप अपने बहादुर साथियों के साथ वापस मक्का आए तो उन लोगों में भारी भय था जिन्होंने आपको तकलीफें दी थीं। मक्का बिल्कुल सामने था और आप आगे बढ़ते जा रहे थे। उधर मक्का के लोगों के मन में कई आशंकाएं थीं।
तब मुहम्मद साहब (सल्ल.) ने एक व्यक्ति अबू सुफियान से कहा – अपनी कौम में जाओ और उनसे कहो – मुहम्मद मक्का में एक अच्छे भाई की तरह दाखिल होगा। आज न कोई विजयी है और न पराजित। आज तो प्रेम और एकता का दिन है। आज चैन और सुकून का दिन है। अबू सुफियान के घर में जो दाखिल हो जाए, उसे अमान (शरण) है। जो घर का दरवाजा बंद कर ले उसको अमान है और जो काबा में दाखिल हो जाए, उसको भी अमान है।
अबू सुफियान ने यह बात मक्का में जाकर कही तो लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई। मुहम्मद साहब (सल्ल.) मक्का में दाखिल हुए। फिर आपने काबा जाने का इरादा किया। काबा की चाबी मंगाई और आप काबा गए।
काबा के बाहर मक्कावालों की भीड़ लगी थी। वे लोग आज अपनी किस्मत का फैसला सुनने खड़े थे। तब आपने कुरैश के लोगों की ओर नजर उठाई और पूछा, कुरैश के लोगो, जानते हो मैं तुम्हारे साथ क्या करने वाला हूं?
सब बोले- अच्छा व्यवहार। आप अच्छे भाई हैं और अच्छे भाई के बेटे हैं।
फिर आपने फरमाया – आज तुम्हारी कोई पकड़ नहीं। जाओ, तुम सब आजाद हो।
मुहम्मद साहब (सल्ल.) ने उन लोगों को आजाद कर दिया जिन्होंने कभी उन्हें बहुत तकलीफें दी थीं। आज आप शक्ति के शिखर पर थे, लेकिन उन लोगों को भी माफ कर दिया जो आपको दुनिया से मिटाना चाहते थे। युद्घ जीतकर दिल जीतने तथा शक्ति के साथ माफी के एेसे उदाहरण इतिहास में बहुत कम मिलते हैं।

Sunday, 27 March 2016

Video: तो क्या 15-15 करोड़ रूपए में उत्तराखंड में सरकार बचाएंगे Harish Rawat ?



Video Source– Youtube Channel

जो Harish Rawat बीजेपी पर खरीद फरोख्त की राजनीति करने का आरोप लगा रहे थे वो खुद एक स्टिंग में खरीद फरोख्त की राजनीति करते दिखाई दे रहे है

New Delhi, Mar 26: इस वक्त देवभूमि सियासत का नया गढ़ बन गया है. जहां पुरानी राजनीति के नए अध्याय लिखे जा रहे है, वो अध्याय जो अपने साथ राजनीति के कालेपन को भी दिखा रहे है, समाज के उत्थान में ये सियासतदान किस किरदार को निभा रहे है. वो साफ कर रहा है.
उत्तराखंड में पिछले कुछ दिनों से जो कुछ हो रहा है वो सब देख रहे है, कांग्रेस के कुछ विधायकों ने लामबंदी करके अपनी ही पार्टी के मुखिया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, जाहिर सी बात है कि यहां किसी एक की सोच व्यक्तिगत है.


बागी विधायक अचानक से बीजेपी की ढाल बनने लगे है, बीजेपी पर आरोप लग रहे थे कि वो खरीद फरोख्त की राजनीति कर रहे है. तो इस पर बागी विधायकों ने नहले पर दहला चलते हुए Harish Rawat  का ही स्टिंग जारी कर दिया, जिसमे वो खुद खरीद फरोख्त करते दिखाई दे रहे हैं।


उत्तराखंड के बागी विधायकों ने जो वीडियो जारी किया है, उसमे सीएम Harish Rawat  किसी से खरीद फरोख्त की बात कर रहे है, बागी विधायकों का दावा है कि सीएम जिससे बात कर रहे है  उसका नाम उमेश शर्मा है. वीडियों में दिखाई दे रहा है कि बात विधायकों को खरीदने के लिए कैश के इंतजाम की हो रही है.

Sunday, 13 March 2016

JNU में कन्हैया पर हमला: बाल पकड़कर घसीटने वाले ने कहा- सबक सिखाने आया हूं

कन्हैया पर हमला करने वाला विकास।

कन्हैया पर हमला करने वाला विकास।
 
नई दिल्ली. JNU स्टूडेंट्स यूनियन के प्रेसिडेंट कन्हैया पर यूनिवर्सिटी कैम्पस में ही एक शख्स ने गुरुवार को हमला कर दिया। विकास नाम के शख्स को पकड़ लिया गया है और कैम्पस में ही एडमिनिस्ट्रेशन बिल्डिंग में रखा गया है। विकास कन्हैया के बयानों से नाराज था और इसका बदला लेने वहां पहुंचा था।कन्हैया के बाल 
 
 
पकड़कर घसीटा...
 
- सूत्रों के मुताबिक, विकास नाम का यह शख्स ऑटो से जेएनयू कैम्पस पहुंचा था।
- आमतौर पर कैम्पस में जाने के लिए यूनिवर्सिटी से जुड़े किसी शख्स से एंट्री परमिशन दिलानी पड़ती है। लेकिन विकास ऑटो से उतरकर सीधा कैम्पस में पहुंच गया था।
- सिक्युरिटी गार्ड्स ने भी उससे कोई पूछताछ नहीं की।
- बताया जा रहा है कि कैम्पस में पहुंचते ही विकास ने कन्हैया पर हमला बोल दिया और उसके बाल पकड़कर कुछ दूर तक घसीटा।
- इसके बाद कन्हैया के साथियों ने उसे पकड़ लिया और एडमिनिस्ट्रेशन बिल्डिंग में ले गए।
- JNU की तरफ से पुलिस को घटना की इन्फॉर्मेशन दे दी गई है।

 
कन्हैया को मारने वाले पर रखा था 11 लाख का इनाम
 
- हाल ही में जेएनयू कैम्पस में कन्हैया कुमार को गोली मारने पर 11 लाख रुपए के इनाम देने वाले पोस्टर लगाए जाने का मामला सामने आया था।
- ये पोस्टर पूर्वांचल सेना नाम के किसी संगठन और उसके हेड आदर्श शर्मा के नाम से लगाए गए थे।
- हालांकि, पुलिस ने पूर्वांचल सेना के प्रेसिडेंट आदर्श कुमार को अरेस्ट कर लिया है।
- पुलिस ने बताया कि 11 लाख रुपए का इनाम देने का एलान करने वाले आदर्श के अकाउंट में सिर्फ 150 रुपए थे।
- पुलिस आदर्श को हिरासत में लेकर उससे पूछताछ कर रही है।
- शर्मा के खिलाफ पार्लियामेंट स्ट्रीट पुलिस स्टेशन में दिल्ली प्रिवेंशन ऑफ डिफेसमेंट ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट के तहत केस रजिस्टर किया गया है।
- हाल ही में कन्हैया के खिलाफ वूमन हेरेसमेंट का भी एक मामला सामने आया है। इस मामले में उसे साढ़े 3 हजार का जुर्माना भरना पड़ा था।
- शिकायत करने वाली महिला उस वक्त डीयू में टीचर थी। अब वह जेएनयू में टीचर है।
 
हाल ही में सामने आया था कन्हैया का सेना पर बयान देने वाला वीडियो
 
- दो दिन पहले कन्हैया कुमार का नाम एक और विवाद जुड़ था। इसमें मीडिया में आए एक वीडियो में कन्हैया कश्मीर में सिक्युरिटी फोर्सेस के बारे में आपत्तिजनक बयान देते सुना गया है।
- वीडियो में कन्हैया कह रहा है, "हम सैनिकों का सम्मान करते हुए यह बात बोलेंगे कि कश्मीर में महिलाओं का बलात्कार किया जाता है सुरक्षा बलों द्वारा।" हालांकि, ये वीडियो कब का है, इसका पता नहीं चल पाया है।
- इससे पहले राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप में गिरफ्तार कन्हैया को 4 मार्च को रिहा किया गया था।
- उसके बाद कैम्पस लौटने पर उसने भाषण दिया था- "अफजल भी देश का नागरिक था, लेकिन मेरा आइकॉन रोहित है।"
विकास को सिक्युरिटी गार्ड ने पकड़ा।
   विकास को सिक्युरिटी गार्ड ने पकड़ा।
 
कन्हैया ने कहा था- जेएनयू में पढ़ने वाला देशद्रोही नहीं हो सकता
 
- कन्हैया ने कहा था, ''मीडिया लोकतंत्र का फोर्थ पिलर है। जेएनयू लोकतंत्र के लिए खड़ा होने वाला संस्थान।''
- ''जो टैक्स आप देते हैं, उसकी सब्सिडी से हम पढ़ते हैं।''
- ''जेएनयू में पढ़ने वाला कोई देशद्रोही नहीं हो सकता।''
- ''मैं मानता हूं कुछ काले बादल हैं। लेकिन काले बादल के बाद खुशहाली की बारिश होती है। सूखा खत्म होता है।"
- ''ये काले बादल लाल सूरज को छिपा नहीं पाएंगे। हम संविधान की हर बात को सच में उतारेंगे।''
- ''संविधान कहता है- समानता, भाईचारा, लोकतंत्र, समाजवाद। सीमा पर जो जवान लड़ रहा है, जो किसान मर रहा है, उसकी बात की जानी चाहिए। रोहित वेमुला की शहादत बेकार नहीं जाएगी।''

 
क्या है जेएनयू विवाद?
 
जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन का प्रेसिडेंट कन्हैया कुमार (फाइल)
   जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन का प्रेसिडेंट कन्हैया कुमार (फाइल)
 
- जेएनयू में 9 फरवरी को लेफ्ट स्टूडेंट्स के ग्रुप्स ने संसद पर हमले के गुनहगार अफजल गुरु और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के को-फाउंडर मकबूल भट की याद में एक प्रोग्राम ऑर्गनाइज किया था। इसे कल्चरल इवेंट का नाम दिया गया था।
- साबरमती हॉस्टल के सामने शाम 5 बजे उसी प्रोग्राम में कुछ लोगों ने देश विरोधी नारेबाजी की। इसके बाद लेफ्ट और एबीवीपी स्टूडेंट्स के बीच झड़प हुई।
- 10 फरवरी को नारेबाजी का वीडियो सामने आया। दिल्ली पुलिस ने 12 फरवरी को देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया।
- इसके बाद जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन के प्रेसिडेंट कन्हैया कुमार को अरेस्ट कर लिया गया। जबकि खालिद फरार हो गया था।
- बाद में पता चला कि वह जेएनयू कैम्पस में ही था। कुछ दिन बाद उसने सरेंडर कर दिया। वह अभी ज्यूडिशियल कस्टडी में है।
- वहीं, कन्हैया कुमार को दिल्ली हाईकोर्ट ने 6 महीने की इंटरिम बेल दी है। इसी के बाद वह तिहाड़ जेल से छूटा है।

Friday, 4 March 2016

स्मृति ईरानी की ज़िन्दगी ऐसी नहीं थी, कामयाबी को पाने के लिए उन्होंने कोई शोर्टकट नहीं चुना !

एक ज़माने में टीवी सीरियल देखने वाली हाउसवाइव्स की फेवरेट समृति आज बच्चे बच्चे की जुबां पर हैं। सोशल मीडिया हो या whatsapp लोग स्मृति की तारीफ करते नहीं थक रहे। जिस तरह स्मृति ने लोकसभा में विपक्षियों को तगड़ा जवाब दिया है वो वाकई तारीफ़-ए-काबिल हैं। स्मृति ने कम समय में पॉलिटिक्स दुनिया में आज अच्छा मुकाम हासिल कर लिया है। स्मृति की चर्चा आज चारो तरफ है। लेकिन स्मृति की ज़िन्दगी हमेशा से ऐसी नहीं थी। उन्होंने खूब मेहनत और स्ट्रगल किया है। उनके इस कामयाबी को पाने के लिए कोई शोर्टकट नहीं चुना। ऐसे में हमने सोचा क्यों न आज आपको स्मृति के बारे में वो सब बयाता जाए जो आप शायद नहीं जानते।

दिल्ली में जन्मी स्मृति ईरानी एक लोवर मिडिल क्लास फॅमिली से हैं। मॉडलिंग वर्ल्ड में आने के पहले वो मुंबई के बांद्रा के मैकडॉनल्ड्स में वेट्रेस और क्लीनर का काम कर चुकी हैं।

 

स्मृति ईरानी घर चलाने के लिए 10 वीं के बाद से काम करने लगी थी। उन्हें एक ब्यूटी प्रोडक्ट को प्रमोट करने के लिए सिर्फ 200 रुपये मिला करते थे।

 स्मृति एक बंगाली-पंजाबी परिवार से हैं। उनके पिता पंजाबी-महाराष्ट्रियन हैं और माँ बंगाली-आसामी।

 

स्मृति का सपना हमेशा से पत्रकार बनने का था लेकिन जब एक जर्नलिस्ट ने उन्हें इंटरव्यू में रिजेक्ट किया तो उन्होंने ये ख़याल हमेशा के लिए अपने मन से निकाल दिया।

1998 में स्मृति ने फेमिना मिस इंडिया में हिस्सा लिया और वो फाइनलिस्ट भी थी लेकिन वो कम्पटीशन नहीं जीत पाई।

 

स्मृति एक अच्छी डांसर भी हैं। वो मिका सिंह के साथ एक म्यूजिक एल्बम में ठुमका भी लगा चुकी हैं।

2000 में स्मृति की किस्मत पूरी तरह से बदल गयी जब एकता कपूर ने उनको एक शो में स्पॉट किया और उन्हें टीवी शो ‘क्योंकि सास भी कभी बहु थी” में लीड कास्ट किया।

  2001 में स्मृति ने अपने बचपन के दोस्त ज़ुबीन ईरानी से शादी की जो पहले से शादी शुदा थे। स्मृति के के दो बच्चे हैं ज़ोहर और ज़ोइश। स्मृति की एक सौतेली बेटी भी है शनेल।

 स्मृति ने 2 टीवी शो ‘विरुद्ध’ और ‘थोड़ी सी ज़मीन और थोडा सा आसमान’ प्रोड्यूस भी किया है।

स्मृति का राजनेतिक कैरियर 2003 में शुरू हुआ जब उन्होंने BJP की सदस्यता ग्रहण की और दिल्ली के चांदनी चौक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ी।

साल 2011 में वो गुजरात से राज्यसभा की सांसद चुनी गयी और इसके बाद जो हुआ वो सब जानते हैं।

 

 

550 साल से ध्यान मग्न है यह संत, जानिए पीछे की पूरी कहानी

हम बात कर रहे है हिमाचल प्रदेश में एक छोटे से शहर लाहुल सपिति के गियू गाँव की गाँव मे एक ममी मिली है जो ध्यान मग्न है। हालाकि जितने भी विशेषज्ञों ने उस पर रिसर्च की उन्होंने उसको ममी मानने से इनकार कर दिया, क्योंकि उस ध्यान मग्न संत के बाल और नाखून अभी भी बढ़ रहें हैं, और सबसे खास बात यह है कि यह ममी ध्यान मग्न अवस्था में मिली है।

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इसी विषय में एक बार इंडियन एक्सप्रेस अखबार में एक रिपोर्ट भी कुछ समय पूर्व प्रकाशित हुई थी। अनोखी बात यह है कि आज तक विश्व में जितनी भी ममी पाई गए हैं वह सब लेटी हुई अवस्था में है, इस ममी की ध्यान मग्न अवस्था ही इसे विशेष बनाती है और इसी कारण वश इसे योग युक्त कहां जा रहा है।

 अगर आप इस ममी को ध्यानपूर्वक देखेंगे तो आप को पता चलेगा कि यह ममी ध्यान अवस्था में बैठी है बिल्कुल
एक संत की तरह जो एक तपस्या में लीन रहता है। गांव वाले कहते है यह ममी पहले नौगांव में ही रखी गई थी और एक
स्तूप में स्थापित थी। जैसे कि यह ममी तिब्बत में है ऐसा हो सकता है कि यह ममी बौद्ध भिक्षु की हो।

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एक भयंकर भूकंप जो 1974 में आया था, उस भूकंप के कारण यह ममी मलबे के अंदर दब गई थी। यह ममी दोबारा तब मिली जब 1995 में ITBP  के जवान सड़क निर्माण के लिए काम कर रहे थे। उस समय ममी को बाहर निकालते हुए जब उसके सिर पर कुदाल लगा तो ममी के सिर से खून आने लगा जिसका निशान आप आज भी वहां देख सकते हैं।

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ITBP ने ममी को 2009 तक अपने कैंपस में रखा। बाद में ग्रामीण इसे अपने साथ ले गए और अपनी धरोहर मानते हुए उन्होंने उसे अपने गांव में स्थापित किया। ममी को एक शीशे के केबिन में रखा गया है और उसकी देखभाल ग्रामीणों ने खुद संभाल रखी है। गांव वाले बारी-बारी इस ममी की देखभाल के लिए अपनी ड्यूटी लगाते हैं।

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जब ITBP ने इस ममी को बाहर निकाला था तब विशेषज्ञों ने इसकी जांच की थी और तब यह पता चला था कि यह ममी 545 वर्ष पुरानी है, लेकिन आश्चर्य तो इस बात का है कि बिना किसी लेप के और जमीन में दबे रहने के बावजूद भी इस ममी की अवस्था आज भी वैसे ही है जैसे 500 वर्ष पूर्व थी। यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि गियू गांव साल के 7-8 महीने भारी बर्फबारी होने के कारण बाकी पूरे देश से कटा रहता है।

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गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि 15वीं शताब्दी में एक महान संत तपस्यारत गांव में रहते थे एक बार उस समय के दौरान गांव  मे बिछुओ का बहुत प्रकोप हो गया तब बिछुओ के प्रकोप से बचने के लिए इस महान संत ने ध्यान करने की सलाह दी।



जब संत ने समाधि लगाई तो गांव में बिना बारिश के ही इंद्रधनुष निकला और गांव बिछुओ के प्रकोप से मुक्त हो गया।
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एक मान्यता और भी है, जिसके मुताबिक यह मम्मी बौद्ध भिक्षु सांगला तेनजिंग की है, जो तिब्बत से होते हुए भारत आए थे और उन्होंने इसी गांव में समाधि लगाई थी।

यह कोई पहली जीवित मम्मी नहीं देखी गई है, ऐसा होता आया है और भारत के विभिन्न हिस्सों में ध्यान मग्न अवस्था में मम्मी मिलना एक आम सी बात है।
आंध्र प्रदेश की एक गुफा में छन भर के लिए कुछ लोग अनाम संत से मिले थे। लोगों का मानना है कि वह संत उसी समय ध्यान से उठे थे और संयोग से उनसे मिले थे। उनका पहला प्रश्न वैदिक संस्कृति में था, “राजा परीक्षित कहां है?” जब उन्हें ज्ञात हुआ कि यह कलयुग है तो वह पुनः ध्यान मुद्रा में चले गए।
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अगर हम उन लोगों की बात माने तो पता चलता है कि वह संत करीब 5000 वर्षों से जिंदा थे। हिमालय में आज भी ऐसे कई अदृश्य कंदराएँ अस्तित्व में है जहां बड़े-बड़े तपस्वी तपस्या में लीन रहते हैं।

Thursday, 3 March 2016

गांव बना पहेली, रोजाना लग जाती है 2-3 घरों में आग

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नई दिल्ली। आपने कई बार अचानक से होने वाली रहस्मयी घटनाओं के बारे में पहले कई बार सुना होगा। ऐसे ही पश्चिम बंगाल के पुरूलिया जिले के बेगुनकोदार रेलवे स्टेशन को लोग भुतहा स्टेशन के नाम से जानते हैं। यह स्टेशन अयोध्या हिल के पास स्थित है। इसमें एक और खास बात है कि ये स्टेशन गूगल सर्च पर भी दुनिया के सबसे भुतहा स्टेशनों में पहले नंबर पर आता है। इस रहेले स्टेशन के बारे में 1969 में शुरू हुई एक अफवाह के बाद यहां आवागमन बंद कर दिया गया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि कोई भी रेल कर्मचारी इस स्टेशन पर जाने के लिए तैयार नहीं होता।

कर रहे हैं वजह ढूंढने की कोशिश

बेगुनकोदार के पास बारतेला में पिछले कुछ दिनों से कुछ अजीबो-गरीब घटनाएं हो रही हैं जिन्होंने लोगों को चौंकाकर रखा हुआ है। इस गांव में 25 दिसंबर से अब तक तकरीबन 60-65 बार आग लगने की घटना हो चुकी है। ग्रामीण अभी तक यहां अचानक से लगने वाली आग की वजह नहीं समझ पाए हैं। इससे ग्रामीण दहशत में हैं और आग लगने की असली वजह ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं।

लगातार हो रही हैं ऐसी घटनाएं

यह गांव कोटशिला पुलिस थाने के अंतर्गत आता है। हालांकि पुलिस इस मामले की तह तक जाने की कोशिश कर रही है। वहीं ग्रामीण बुरी तरह से डरे हुए हैं और अपने स्तर पर भी जांच कर रहे हैं। इस गांव में आग लगने का पहला मामला 25 दिसंबर को हुआ। इसके बाद से लगभग रोज दो-तीन घरों में ऐसी घटनाएं हो रही हैं।

इन घरों में ज्यादा हो रही है घटना

गांव के लोग इसे महज भूत-प्रेत का कारनामा नहीं मान रहे और बल्कि इसकी असली वजह को जानने की भी कोशिश कर रहे हैं। ग्रामीणों का मानना है कि आग लगने की ज्यादातर घटनाएं तालाब के पास के घरों में हो रही हैं। ऐसा हो सकता है कि तालाब से निकलने वाली किसी गैस की वजह से बार-बार आग लग रही हो।

समाज के विरोध के बावजूद एक शख्स ने पत्नी की 13वीं में पैसे खर्च करने के बजाय गांव के स्कूल में लगाए डेढ़ लाख रु.

जिंदगी कब किस मोड़ पर किसका साथ छोड़ दे, कहा नहीं जा सकता। बावजूद इसके कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपनों के दुनिया से चले जाने के बाद भी समाज के बारे में सोचते हैं और समाज के लिए कुछ कर उस सदमे से उबरने की कोशिश करते हैं भले ही वो समाज उनका साथ ना दे। कुछ ऐसा ही किया महाराष्ट्र के अकोला में रहने वाले अविनाश नकट ने। इस साल 5 फरवरी को जब उनकी पत्नी का देहांत हुआ तो उन्होंने तय किया कि वो अपनी पत्नी की तेरहवीं पर खर्च होने वाले पैसे का इस्तेमाल अपने गांव के स्कूल को डिजिटल बनाने में करेंगे। हालांकि समाज के ज्यादातर लोगों ने उनका विरोध किया, लेकिन धुन के पक्के और समाज के प्रति बेहतर सोच रखने वाले अविनाश अपने फैसले से पीछे नहीं हटे और उन्होंने करीब डेढ़ लाख रुपये की लागत से अपने गांव के स्कूल को डिजिटल किया है। इसका असर यह हुआ कि कल तक जो लोग उनके फैसले पर ऊंगली उठा रहे थे, आज वो उनकी तारीफ कर रहे हैं।

अविनाश महाराष्ट्र अकोला के टांडली बजरक नाम के गांव के रहने वाले हैं। उनका एक हंसता खेलता परिवार था। उनके परिवार में उनकी पत्नी रूपाली, दो बेटियां समृद्धि और आनंदी थी। लेकिन इस परिवार में एक ऐसा भूचाल आया कि सब कुछ बदल गया। अविनाश ने योरस्टोरी को बताया,
"3 फरवरी तक सब कुछ सामान्य था, मेरी पत्नी उस दिन खुद ही घर का सामान बाजार से लेकर आयी थीं। साथ ही बच्चों को स्कूल से लाने का काम भी उन्होंने ही किया था, लेकिन उसी शाम उनकी थोड़ी तबीयत खराब हुई, जिसके बाद रूपाली के भाई जो खुद एक डॉक्टर हैं, उन्होने उसे कुछ दवाईयां दी जो आमतौर पर डॉक्टर प्राथमिक उपचार के लिये देते हैं।  लेकिन रूपाली की तबीयत ठीक नहीं हुई और बुखार बना रहा। हम दोनों ने तय किया कि हम शाम को डॉक्टर के पास जाएंगे इस बीच रूपाली की नाक से खून बहने लगा और कुछ देर बाद अपने आप बंद भी हो गया। हालात की गंभीरता को समझते हुए मैं रूपाली को डॉक्टर के पास ले गया। जब अस्पताल पहुंचा तो मुझे पता चला की रूपाली को ल्यूकोमिया हो गया है।"




ल्यूकोमिया का इलाज अकोला में संभव नहीं था इस वजह से अविनाश ने तय किया कि वो अपनी पत्नी को नागपुर ले जाएंगे। इसके बाद अविनाश ने एंबुलेंस बुलवाया और रूपाली के साथ रूपाली के भाई और अपने भांजे को लेकर नागपुर के लिए रवाना हो गये। हालांकि अविनाश ने रूपाली को उनकी बीमारी के बारे में कुछ नहीं बताया था। रास्ते में दोनों पति-पत्नी बातें करते रहे और कुछ दूर जाने के बाद रूपाली की आंखें धीरे धीरे बंद होने लगी। तो अविनाश ने सोचा कि शायद रूपाली को नींद आ रही है, इस तरह जब तक ये नागपुर के अस्पताल में पहुंचते तब तक रूपाली इस दुनिया को छोड़ चुकी थी। डॉक्टरों ने बताया कि रूपाली की मौत ब्रेन हैमरेज की वजह से हुई है।



अपनी पत्नी रूपाली से बेहद प्यार करने वाले अविनाश अंदर से टूट गये थे, लेकिन अपनी दो बेटियों के खातिर उन्होने अपने को संभाला और घर पहुंचे। अविनाश बताते हैं कि


"जब मैं अन्तिम संस्कार कर घर पहुंचा तो घर पर काफी भीड़ थी। यह देखकर मैंने सोचा कि अगर घर में ऐसे ही रोना चलता रहा तो मेरे बच्चों पर इसका बहुत गलत असर जाएगा। मैंने सभी लोगों को कहा कि मैं कल से काम पर जा रहा हूं और बच्चे भी कल से स्कूल जाएंगें। साथ ही मैंने उन सब से ये भी कहा कि मृत्यु के बाद होने वाली कोई रस्म अब ना की जाये। इस बात का विरोध मेरे परिवार को छोड़कर वहां मौजूद सब लोगों ने किया लेकिन मैं अपने फैसले पर अडिग रहा। मैंने तय किया कि अपनी पत्नी की तेरहवीं पर खर्च होने वाले पैसे का इस्तेमाल गांव के स्कूल पर खर्च करुंगा, जिसकी हालत काफी खराब है।"


अविनाश ने बताया,
“हमारे गांव के जिला परिषद स्कूल की हालत काफी खराब थी। ये स्कूल पहली क्लास से 7वीं तक है, मैं भी इसी स्कूल का पढ़ा हुआ हूं हमारे समय में इस स्कूल में एक कक्षा में 35 बच्चे पढ़ा करते थे लेकिन आज संसाधनों की कमी के कारण पूरे स्कूल में 35 से 40 बच्चे पढ़ते हैं। इसलिए मैंने इस स्कूल पर पैसा खर्च करने का फैसला लिया।” 
इस तरह अविनाश ने अपनी पत्नी रूपाली की मृत्यु के 5वें दिन बाद ही स्कूल में रेनोवेशन का काम शुरू कर दिया और दीवारों को कार्टून कैरेक्टरों से सजा दिया, ताकि बच्चे इन्हें देखकर स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित हों साथ ही उन्होने स्कूल में पंखे, कंप्यूटर, प्रोजेक्टर, कालीन आदि लगवाये। शुरू में उनके इस काम का बहुत विरोध हुआ खासतौर पर महिलाएं उन्हें ऐसा ना करने के लिए बहुत समझाती थीं, लेकिन अविनाश ने उनकी एक नहीं सुनी।


अविनाश कहते हैं कि “हमारे गांव में गरीबी बहुत है और वहां के ज्यादातर लोग किसान हैं, सूखे की वजह से वहां किसान आत्महत्या भी करते हैं, तब मैं उनको समझाता था कि अगर पैसा नही है तो कर्ज लेकर मृत्योपरांत होने वाली रस्मों को ना करें क्योंकि जाने वाला तो चला गया है अगर इस पैसे को हम गांव के विकास में खर्च करेंगे तो इससे गांव का ही विकास होगा।” लोगों को इस तरह की सलाह देने वाले अविनाश का कहना है कि जब उनके साथ ये घटना घटी तो उन्होने तय किया को वो लोगों को इसके लिए प्रोत्साहित करते हैं और खुद अगर ऐसा नहीं करेंगे तो गलत होगा। इसलिए उन्होंने फैसला लिया कि वो इस पैसा का इस्तेमाल गांव के विकास पर खर्च करेंगे।


अविनाश पुरानी बातों को याद करते हुए कहते हैं कि करीब दो महीने पहले उनकी पत्नी ने स्कूल की हालत सुधारने को लेकर उनसे बात की थी, लेकिन अचानक जब ये घटना हुई तो उन्होंने अपनी पत्नी के सपने को सच करने के बारे में सोचा। अविनाश कहते हैं कि उस वक्त भले ही दो एक परिवार उनके साथ खड़े थे लेकिन आज एक दो परिवार को छोड़ पूरा गांव उनके फैसले के साथ खड़ा है।

रामायण कोई काल्पनिक घटना नहीं, सच साबित करते हैं ये 21 तथ्य

रामायण और भगवान राम से हिन्दुओं की आस्था जुड़ी हुई है, लेकिन अकसर ये सवाल उठते रहे हैं कि क्या सच में भगवान राम का इस धरती पर जन्म हुआ था? क्या रावण और हनुमान थे? हम उनको तो किसी के सामने नहीं ला सकते लेकिन उनके अस्तित्व के प्रमाण को आपके सामने ला सकते हैं. भारत और श्रीलंका में कुछ ऐसी जगहें हैं जो इस बात का प्रमाण देती हैं कि रामायण में लिखी हर बात सच है.

1. Cobra Hood cave, Sri Lanka

कहा जाता है कि रावण जब सीता का अपहरण कर के श्रीलंका पहुंचा तो सबसे पहले सीता जी को इसी जगह रखा था. इस गुफ़ा पर हुई नक्काशी इस बात का प्रमाण देती है.

2. Existence of Hanuman Garhi

यह वही जगह है जहां हनुमान जी ने भगवान राम का इंतज़ार किया था. रामायण में इस जगह के बारे में लिखा है, अयोध्या के पास इस जगह पर आज एक हनुमान मंदिर भी है.

3. भगवान हनुमान के पद चिन्ह

जब हनुमान जी ने सीता जी को खोजने के लिए समुद्र पार किया था तो उन्होंने भव्य रूप धारण किया था. इसीलिए जब वो श्रीलंका पहुंचे तो उनके पैर के निशान वहां बन गए थे, जो आज भी वहां मौजूद हैं.

4. राम सेतु

रामायण और भगवान राम के होने का ये सबसे बड़ा सबूत है. समुद्र के ऊपर श्रीलंका तक बने इस सेतु के बारे में रामायण में लिखा है और इसकी खोज भी की जा चुकी है. ये सेतु पत्थरों से बना है और ये पत्थर पानी पर तैरते हैं.

5. पुरातत्व विभाग ने भी माना

भगवान राम के होने की बात खुद पुरातत्व विभाग भी मानता है. पुरातत्व विभाग के अनुसार 1,750,000 साल पहले श्रीलंका में ही सबसे पहले इंसानों के घर होने की बात कही गई है और राम सेतु भी उसी काल का है.

6. पानी में तैरने वाले पत्थर

राम सेतु एक ऐसा पुल था जिसके पत्थर पानी पर तैरते थे. सुनामी के बाद रामेश्वरम में उन पत्थरों में से कुछ अलग हो कर जमीन पर आ गए थे. शोधकर्ताओं नें जब उसे दोबारा पानी में फेंका तो वो तैर रहे थे, जबकि वहां के किसी और आम पत्थर को पानी में डालने से वो डूब जाते थे.

7. द्रोणागिरी पर्वत

युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण को मेघनाथ ने मूर्छित कर दिया था और उनकी जान जा रही थी, तब हनुमान जी संजीवनी लेने द्रोणागिरी पर्वत गए थे. उन्हें संजीवनी की पहचान नहीं थी तो उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का निर्णय लिया. युद्ध के बाद उन्होंने द्रोणागिरी को यथास्थान पहुंचा दिया. उस पर्वत पर आज भी वो निशान मौजूद हैं जहां से हनुमान जी ने उसे तोड़ा था.

8. श्रीलंका में हिमालय की जड़ी-बूटी

श्रीलंका के उस स्थान पर जहां लक्ष्मण को संजीवनी दी गई थी, वहां हिमालय की दुर्लभ जड़ी-बूटियों के अंश मिले हैं. जबकि पूरे श्रीलंका में ऐसा नहीं होता और हिमालय की जड़ी-बूटियों का श्रीलंका में पाया जाना इस बात का बहुत बड़ा प्रमाण है.

9. अशोक वाटिका

हरण के पश्चात सीता माता को अशोक वाटिका में रखा गया था, क्योंकि सीता जी ने रावण के महल में रहने से मना कर दिया था. आज उस जगह को Hakgala Botanical Garden कहते हैं और जहां सीता जी को रखा गया था उस स्थान को 'सीता एल्या' कहा जाता है.

10. लेपाक्षी मंदिर

सीता हरण के बाद जब रावण उन्हें आकाश मार्ग से लंका ले जा रहा था तब उसे रोकने के लिए जटायू आए थे. रावण ने उनका वध कर दिया था. आकाश से जटायू इसी जगह गिरे थे. यहां आज एक मंदिर है जिसे लेपाक्षी मंदिर के नाम से जाना जाता है.

11. टस्क हाथी

रामायण के एक अध्याय, सुंदर कांड में श्रीलंका की रखवाली के लिए विशालकाय हाथी का विवरण है, जिन्हें हनुमान जी ने धराशाही किया था. पुरातत्व विभाग को श्रीलंका में ऐसे ही हाथियों के अवशेष मिले हैं जिनका आकार आम हाथियों से बहुत ज़्यादा है.

12. कोंडा कट्टू गाला

हनुमान जी के लंका जलाने के बाद रावण भयभीत हो गया था कि हनुमान जी दोबारा हमला न कर दें, इसलिए रावण ने सीता जी को अशोक वाटिका से हटा कर कोंडा कट्टू गाला में रखा था. यहां पुरातत्व विभाग को कई गुफ़ाएं मिली हैं जो रावण के महल तक जाती हैं.

13. रावण का महल

पुरातत्व विभाग को श्रीलंका में एक महल मिला है जिसे रामायण काल का ही बताया जाता है. यहां से कई गुप्त रास्ते निकलते हैं जो उस शहर के मुख्य केंद्रो तक जाते हैं. ध्यान से देखने पर ये पता चलता है कि ये रास्ते इंसानों द्वारा बनाए गए हैं.

14. कालानियां

रावण के मरने के बाद विभीषण को लंका का राजा बनाया गया था. विभीषण ने अपना महल कालानियां में बनाया था जो कैलानी नदी के किनारे था. पुरातत्व विभाग को इस नदी के किनारे उस महल के कुछ अवशेष भी मिले हैं.

15. लंका जलने के अवशेष

रामायण के अनुसार हनुमान जी ने पूरे लंका को आग लगा दी थी, जिसके प्रमाण उस जगह से मिलते हैं. जलने के बाद उस जगह की मिट्टी काली हो गई है जबकि उसके आस-पास की मिट्टी का रंग आज भी वही है.

16. दिवूरमपोला, श्रीलंका

रावण से सीता को बचाने के बाद भगवान राम ने उन्हें अपनी पवित्रता साबित करने को कहा था, जिसके लिए सीता जी ने अग्नि परीक्षा दी थी. आज भी उस जगह पर वो पेड़ मौजूद है जिसके नीचे सीता जी ने इस परीक्षा को दिया था. उस पेड़ के नीचे वहां के लोग आज भी अहम फ़ैसले लेते हैं.

17. रामलिंगम

रावण को मारने के बाद भगवान राम को पश्चाताप करना था क्योंकि उनके हाथ से एक ब्राहमण का कत्ल हुआ था. इसके लिए उन्होंने शिव की आराधना की थी. भगवान शिव ने उन्हें चार शिवलिंग बनाने के लिए कहा. एक शिवलिंग सीता जी ने बनाया जो रेत का था. दो शिवलिंग हनुमान जी कैलाश से लेकर आए थे और एक शिवलिंग भगवान राम ने अपने हाथ से बनाया था, जो आज भी उस मंदिर में हैं और इसलिए ही इस जगह को रामलिंगम कहते हैं.

18. जानकी मंदिर

नेपाल के जनकपुर शहर में जानकी मंदिर है. रामायण के अनुसार सीता माता के पिता का नाम जनक था और इस शहर का नाम उन्हीं के नाम पर जनकपुर रखा गया था. साथ ही सीता माता को जानकी के नाम से भी जाना जाता है और उसी नाम पर इस मंदिर का नाम पड़ा है जानकी मंदिर. यहां सीता माता के दर्शन के लिए हर रोज़ हज़ारो श्रद्धालु आते हैं.

19. पंचवटी

नासिक के पास आज भी पंचवटी तपोवन है, जहां अयोध्या से वनवास काटने के लिए निकले भगवान राम, सीता माता और लक्ष्मण रुके थे. यहीं लक्ष्मण ने सूपनखा की नाक काटी थी.

20. कोणेश्वरम मंदिर

रावण भगवान शिव की अराधना करता था और उसने भगवान शिव के लिए इस मंदिर की भी स्थापना करवाई. यह दुनिया का इकलौता मंदिर है जहां भगवान से ज़्यादा उनके भक्त रावण की आकृति बनी हुई है. इस मंदिर में बनी एक आकृति में रावण के दस सिरों को दिखाया गया है. कहा जाता है कि रावण के दस सिर थे और उसके दस सिर पर रखे दस मुकुट उसके दस जगहों के अधिपत्य को दर्शाता है.

21. गर्म पानी के कुएं

रावण ने कोणेश्वरम मंदिर के पास गर्म पानी के कुएं बनवाए थे, जो आज भी वहां मौजूद हैं.